लाहौर छोड़ने के बाद दिल्ली में कुछ वक़्त बिताकर साहिर लुधियानवी जब बंबई गए, तब तक उनका पहला संग्रह ‘तल्ख़ियाँ‘ छप चुका था और वह मशहूर हो चुके थे. अपनी ग़ज़लों, नज़्मों की बदौलत उन्हें ख़ूब शोहरत और अवाम का ढेर सारा प्यार मिला. [….]
उर्दू की मॉडर्न कहानी के चार स्तंभ रहे. तीन का भार मर्दाने कन्धों पर था – कृश्नचन्दर, राजिंदर सिंह बेदी और सआदत हसन मंटो. चौथा कंधा ज़नाना था. इस अकेले स्तंभ में इतनी ताक़त रही कि इन्हें ‘मदर ऑफ़ मॉडर्न स्टोरी’ कहा गया. [….]
आपको ‘उमराव जान’ की ख़ानम जान की याद है! और ‘बाज़ार’ की हजन बी! ‘सलाम बाम्बे’ के रेडलाइट एरिया के कोठे की मालकिन!! हालांकि यह उनकी शख़्सियत का एक पहलू है. शौकत कैफ़ी ने लम्बे अर्से तक पृथ्वी थिएटर और इप्टा में सक्रिय रहीं [….]
एक कैफ़ियत होती है प्यार. आगे बढ़कर मुहब्बत बनती है. ला-हद होकर इश्क़ हो जाती है. फिर जुनून. और बेहद हो जाए तो दीवानगी कहलाती है. इसी दीवानगी को शायरी का लिबास पहना कर तरन्नुम से पढ़ा जाए तो उसे मजाज़ कहा जाता है. [….]
शायर होने के साथ-साथ हसरत मोहानी जंगे आज़ादी के सिपाही भी थे. वही थे, जिन्होंने ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारा दिया. संविधान सभा के वह अकेले ऐसे मेम्बर थे, जिन्होंने संविधान पर अपने दस्तखत नहीं किये. उन्हें लगता था कि देश के संविधान में मजदूरों और किसानों की हुकूमत आने का कोई ठोस सबूत नहीं है. [….]
दोहे जो किसी समय सूरदास, तुलसीदास, मीरा की ज़बान से निकलकर लोक जीवन का हिस्सा बना, हमें हिन्दी पाठ्यक्रम की किताबों में मिले. थोड़ा ऊबाऊ. थोड़ा बोझिल. लेकिन खनकती आवाज़, भली सी सूरत वाला एक शख़्स, जो आधा शायर रहा और आधा कवि, दोहों से प्यार करता रहा. [….]
यह वसंतोत्सव था. संकरे रास्तों और गलियों की ठंडी छायाओं से ढेर सारे लोग चमकीले सजे-धजे बादलों की तरह निकल रहे थे. बाड़े से छूटे सफ़ेद चमकते खरगोशों के मोटे-मोटे झुण्डों की मानिंद ये बादल बस्ती के बाहर चांदी-सी चमचमाहट वाले समंदर की ओर लपके जा रहे थे. उन्हें मेले में पहुंचने की जल्दी थी. [….]
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर डीन मर्विन जोंस उर्फ़ प्रोफेसर डीनो ने 59 साल की उम्र में इस संसार को अलविदा कह दिया. एकदम अचानक से. मानो अचानक से लोगों को चकित करना उनका शगल हो. [….]
गूगल इंडिया का आज का डूडल ख़ास है. यह डूडल इंग्लिश चैनल पार करने वाली एशिया की पहली तैराक आरती साहा के जन्मदिन की स्मृति है. पद्मश्री पाने वाली पहली महिला खिलाड़ी भी आरती साहा ही हैं. [….]
राजा मेहदी अली ख़ान के नाम और काम से जो लोग वाक़िफ़ नहीं हैं, ख़ास तौर से नई पीढ़ी, उन्हें यह नाम सुनकर लग सकता है कि किसी छोटी-मोटी रियासत के राजा के बारे में बात हो रही है. यह एक पूरा नाम है, यह जानकर उन्हें हैरानी हो सकती है. [….]