यह सन् 1932 की बात है. उन दिनों एक किताब छपकर आई. नाम था – ‘अंगारे’ और यह सज्जाद ज़हीर, अहमद अली, रशीद जहां और महमूदुज़्ज़फर की नौ कहानियां का संग्रह था, जिसमें एक एकांकी भी शामिल था. सिर्फ़ नाम ही नहीं, किताब की तासीर भी अंगारे की तरह ही साबित हुई. [….]