प्रभू हर्रफूलाल तो बहुत दिन से नहीं मिले. उनके पी.ए. मिल गए. मैनें हाल-चाल पूछा तो बोले – “बाबा तो फ़कीर हैं, झोला उठाकर चले गए थे पहाड़ों की तरफ़.” फिर बताया कि पहाड़ तो उनका घर है और बचपन से वो पहाड़ ही बनना चाहते थे. [….]
कैसा तो समय आ गया है, मुहावरे तक उल्टे होते जा रहे हैं. अब यह मुहावरा ही ले लीजिए, ‘दूर के ढोल सुहाने’. सब जानते ही हैं इसका मतलब. लेकिन अब ये मुहावरा उलट गया है! अब दूर वाले ढोल में भले मीन-मेख निकाल ले कोई, पास बजते फटे ढोल भी सुहाने लगने लगे हैं. [….]
पता तो चल सकता था लेकिन अर्नब गोस्वामी अभी पूछ नहीं पा रहे हैं. काहे कि उनसे ख़ुद ही पूछताछ चल रही है. दूसरे चैनल अभी सुशांत सिंह राजपूत के केस में अल्ल-बल्ल बक देने की माफ़ी माँगने में व्यस्त हैं. [….]
– पहला दृश्य –
मुक्तिबोध : पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?
साहित्य, कला, संस्कृति के निष्पक्ष अलम्बरदार : हैं जी ? पॉलिटक्स ? वो क्यों ? माने पॉलिटक्स की ज़रूरत ही क्या है? [….]