उर्दू की मॉडर्न कहानी के चार स्तंभ रहे. तीन का भार मर्दाने कन्धों पर था – कृश्नचन्दर, राजिंदर सिंह बेदी और सआदत हसन मंटो. चौथा कंधा ज़नाना था. इस अकेले स्तंभ में इतनी ताक़त रही कि इन्हें ‘मदर ऑफ़ मॉडर्न स्टोरी’ कहा गया. [….]
एक कैफ़ियत होती है प्यार. आगे बढ़कर मुहब्बत बनती है. ला-हद होकर इश्क़ हो जाती है. फिर जुनून. और बेहद हो जाए तो दीवानगी कहलाती है. इसी दीवानगी को शायरी का लिबास पहना कर तरन्नुम से पढ़ा जाए तो उसे मजाज़ कहा जाता है. [….]
दोहे जो किसी समय सूरदास, तुलसीदास, मीरा की ज़बान से निकलकर लोक जीवन का हिस्सा बना, हमें हिन्दी पाठ्यक्रम की किताबों में मिले. थोड़ा ऊबाऊ. थोड़ा बोझिल. लेकिन खनकती आवाज़, भली सी सूरत वाला एक शख़्स, जो आधा शायर रहा और आधा कवि, दोहों से प्यार करता रहा. [….]