डायरी | मीठा सोडा रामबाण दवाई भी

  • 11:17 am
  • 24 March 2022

पिछले नौ सालों से बिना किसी दवा-दारू के मैं अपना ब्लड प्रेशर 110/75 के इर्द-गिर्द बनाए रखता चला आया हूँ, और कारण है नमक का पूर्ण परित्याग. पिछले साल 17 नवम्बर को लेकिन जब मेरी पहली डायलिसिस चल रही थी, मेरा बीपी अचानक घटकर 90/55 पर आ गया. वहां मौजूद डॉक्टर और डायलिसिस टेक्नीशियन ने मनीषा से तत्काल नमकीन भुजिया या कोई नमकीन चीज़ मुझे खिलाने को कहा. मनीषा भाग कर डायलिसिस सेंटर के पड़ोस के स्टोर से भुजिया और मूंग दाल का पैकेट लाईं और मुझे खिलाया. 20-20 ग्राम के दोनों पैकेट खाकर ख़त्म करने के कुछ देर बाद मेरा बीपी 120/80 पर आकर स्थिर हो गया. तब जाकर डॉक्टर, टेक्नीशियन और मनीषा- तीनों ने राहत की सांस ली.

शाम को जब मनीषा की डॉ.जेता सिंह से फ़ोन पर बात हुई तो नमक पर ख़बरदार करते हुए उन्होंने चेतावनी दी – ‘नमक की चीज़ें खिलाने की ऐसी ग़लती दोबारा भूल कर भी न करें.’ उन्होंने कहा कि विकल्प के तौर पर हर दिन मुझे मीठा सोडा दिया जाय- सुबह और शाम ख़ाली पेट एक चम्मच. साथ ही यह हिदायत भी दी कि सोडा खाने के एक घंटे बाद तक मुझे हरगिज़ कुछ और खाने के लिए न दिया जाए. तीसरे दिन जब फिर मेरी डायलिसिस दोबारा हुई तो बीपी 115/75 पर रहा. यह सिलसिला आज तक जारी है.

मीठा सोडा या बेकिंग सोडा (सोडियम बाई-कार्बोनेट) को लेकर अगर आपकी अवधारणा यही है कि यह या तो हाज़मा दुरुस्त करने के काम आता है या कुछ ख़ास व्यंजन बनाते वक़्त उनका आयतन बढ़ाने, उन्हें हल्का या फ़्लफ़ी बनाने में इस्तेमाल होता है तो यह मीठा सोडा की बड़ी उपयोगिता को बहुत छोटे दायरे तक सीमित करना होगा. बेशक़, यह आपकी रसोई के किसी कोने में शीशी या डिब्बे में पड़ा रहने वाला और मौक़े-बेमौक़े गृहिणियों के काम आने वाली चीज़ है, मीठा सोडा की महिमा लेकिन अपरम्पार है. सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए यह ऐसा उपयोगी पदार्थ है, जो कई गंभीर बीमारियों से बचाव करता है. नेचुरोपैथ अपनी इलाज प्रक्रिया में इसका भरपूर इस्तेमाल करते हैं. मीठा सोडा की महिमा का पता मुझे दस साल पहले भागलपुर के ‘तपोवर्द्धन प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र’ में ही चला.

सन् 2012 में मैंने जाना कि मुझे किडनी रोग (‘क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़’ या ‘सीकेडी’) है. दिल्ली एम्स में हुई जांच से पता चला कि मेरी दोनों किडनी 75 प्रतिशत तक बेकार हो चुकी हैं और वहीँ यह भी बता दिया गया कि ऐलोपैथी के लिए ‘सीकेडी’ असाध्य रोग है. यहाँ न तो नष्ट हो चुके ‘नेफ्रॉन्स’ को पुनर्जीवित किया जा सकता है और न ही शेष बचे 25% क्षरणशील ‘नेफ्रॉन्स’ को नष्ट होने से बचाने की कोई औषधि या चिकित्कीय विधि ही उनके पास है. तब मैंने नेचुरोपैथी में अपने रोगी जीवन की राह खोजने शुरू किए.

दरअसल तब से 15 साल पहले से ही मैं हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी से जूझ रहा था. ‘एम्स’ में बता दिया गया था कि मेरी ‘क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़’ मूलतः इसी हाई ब्लडप्रेशर के चलते पैदा हुई थी. मुझे यह भी पता चला कि ‘सीकेडी’ के जो तीन मूल कारण हैं, उनमें हाई बीपी के अलावा डायबिटीज़ और बार-बार होने वाले यूटीआई (मूत्र नली संक्रमण सम्बन्धी रोग) हैं. ये तीनों रोग अलग-अलग कारण भी बन सकते हैं, कोई दो या तीनों संयुक्त रूप से भी. मैं भाग्यशाली हूँ कि एक अदद रोग में ही धराशायी हुआ.

‘तपोवर्द्धन प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र’ भागलपुर पहुँचने पर मेरी प्राकृतिक चिकित्सा शुरू हुई. भांति-भांति के ठंडे-गर्म स्नान, सिकाइयाँ, मिट्टी के लेप आदि-आदि. मेरी सुबह और शामों पर ‘तपोवर्द्धन’ के पुरुष नर्स का क़ब्ज़ा होता चला गया. डॉ.जेता सिंह ने एकदम शुरू में ही खान-पान में प्रोटीन उत्पादों के साथ-साथ जिन दो बेसिक खाद्य तत्वों पर सख़्त प्रतिबन्ध लगाया, वह चीनी और नमक थे. उन्होंने साफ़-साफ़ बताया कि किडनी के बचे खुचे ‘नेफ्रॉन’प्रोटीन को ख़ून से छान कर अलग नहीं कर सकते, और चीनी बनाने में इस्तेमाल हुए रसायन किडनी को ज़बरदस्त नुकसान पहुंचाते हैं. नमक तो किडनी के लिए सबसे बड़ा ज़हर है. ख़ून में नमक का स्पर्श पाते ही किडनी छानने के अपने सभी दीगर काम बंद करके सिर्फ़ ‘नमक का दारोग़ा भर बन जाता है. नतीजतन वह ख़ून के दूसरे अवयवों की सफाई नहीं कर पाता. नमक किडनी रोगियों के लिए तो प्राणघातक है ही, ह्रदय और लिवर रोगियों के लिए भी यह अव्वल दर्जे का दुश्मन है.

यह सन् 2012 की जुलाई का महीना था और भागलपुर सहित समूचा दक्षिणी बिहार और झारखण्ड मालदाह आमों की ख़ुशबू से महमहा रहा था. यूं तो यह आम मूलतः मालदाह (पश्चिम बंगाल) की पैदाइश है और उस क्षेत्र में पाँच लाख टन के उत्पादन के साथ यह देश की आम की कुल राष्ट्रीय पैदावार में 5% की अपनी भागीदारी करता है. मालदाह आम ने लेकिन युगों से बंगाल से शुरू करके पूरे बिहार और छत्तीसगढ़ तक छाया हुआ हैं. शहर और क़स्बों के बाहरी हिस्सों से शुरू होकर सुदूर गावों तक फैले मालदाह आमों के बाग-बग़ीचे और वन प्रांतर को हर तरफ़ घेरे इसके घने और ऊंचे वृक्ष इलाक़े के लोगों के लिए जैसे प्रकृति का अनुपम उपहार हैं.

बेहद सस्ते दामों पर बिकने वाले और शानदार ख़ुशबू से भरे इस बेहद मीठे फल का सेवन स्वाद और मन को जैसी तृप्ति देता है, वह सचमुच बेजोड़ है. बिना चखे इसके स्वाद और तृप्ति की कल्पना नहीं की जा सकती. कुछ ही समय के बाद डॉ.जेता सिंह ने मेरा जो डाइट चार्ट तैयार किया, उसमें दिन भर में सिर्फ़ चार चीज़ों की इजाज़त थी- मालदाह आम, शहद, नींबू और पानी. अगले दो महीने मैं इन्हीं चार चीज़ों पर आश्रित रहा. दिन भर में मैं 5-6 किलो तक आम खा जाता. बाद के बचे दो महीने भी, जबकि आम की फसल जा चुकी थी, मुझे बिना अन्न के (सिर्फ शहद पर) रखा गया. नमक, चीनी, रोटी, सब्ज़ी सब अलविदा! बीच-बीच में मुझे मीठा सोडा की ख़ुराक़ भी दी जाती.

मीठा सोडा दरअसल है क्या? क्यों यह हमारे लिए बेहद ज़रूरी है और कैसे ये कई घातक और असाध्य रोगों में अपनी जीवनदायी भूमिका अदा करता है? मीठा सोडा या बेकिंग सोडा
(सोडियम बाइ-कार्बोनेट या सोडियम हायड्रोजन कार्बोनेट, NaHCO3) मूलतःएक क्षारीय पदार्थ है. यही वजह है कि इसका उपयोग उन तमाम रोगों में बेहद कारगर है, जिनकी जड़ में अम्लीय तत्व होते हैं. कैंसर, लिवर सिरॉसिस, क्रोनिक किडनी डिज़ीज़, गेस्रोहैस्फिन्गल रिफ्लक्स डिसीज़ (जीआरडी), पेप्टिक अल्सर, गैस्ट्रोएन्टाइटिस आदि ऐसी ही दर्जनों बीमारियां हैं, जिनमें ज़्यादातर प्राणघातक भी हैं.

यह सर्वविदित है कि हमारे शरीर की कोशिकाओं के निर्माण, पुनर्निर्माण और तमाम अंगों को ऑक्सीज़न, लवण और दूसरे ज़रूरी तत्वों की सप्लाई में ख़र्च होने वाली ऊर्जा से जनित कचरे की ख़ून में उपस्थिति को हमारी किडनी साफ़ करती हैं. यह हमारे ख़ून में व्याप्त अतिरिक्त पानी की मात्रा को भी घटाकर मूत्र के रास्ते शरीर से निकलती हैं. ‘क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़’ की अवस्था में हमारे शरीर में तेज़ी के साथ एसिड का निर्माण होता है. तीव्र गति से होने वाला एसिड का यह निर्माण न सिर्फ़ ‘क्रॉनिक किडनी डिसऑर्डर’ के क्षरण को गतिशीलता प्रदान करता है, बल्कि हाई बीपी, डायबिटीज़ और दूसरी अन्य बीमारियों को भी हवा देता है.

क्षारीय होने के नाते सोडियम बायोकार्बोनेट एसिड के इस स्तर को घटा कर उसे लवण में तब्दील कर देता है. यही नहीं, इसका दो या तीन वक़्त किया जाने वाला नियमित इस्तेमाल एसिड निर्माण की प्रवृत्ति पर भी पर भी रोक लगाता है और इस तरह किडनी के न सिर्फ़ शेष बच रहे ‘नेफ्रॉन्स’ को क्षरणशील होने से बचाता है, बल्कि नष्ट हो चुके ‘नेफ्रॉन्स’ के पुनरुद्धार किये जाने के नेचुरोपैथी चिकित्सा के अन्य प्रयासों में भी सहायक मेडिकल टूल की तरह काम करता है. किडनी के वे मरीज़ जिनकी डायलिसिस शुरू हो चुकी है, उन्हें यदि आधा गिलास पानी में एक छोटा चम्मच मीठा सोडा घोलकर दिन में तीन से चार बार पिलाया जाय तो बड़ा फायदा होता है. बहुत से मामलों में इसने डायलिसिस को रिवर्स करने में भी सफलता पायी है.

शरीर में एसिड निर्माण की तीव्र गति- अल्सर, ट्यूमर और कैंसर जैसी बीमारियों की भी जन्मदाता है. जिन लोगों में ये बीमारियां प्रारंभिक रूप से जन्म ले चुकी होती हैं, वे यदि किसी नेचुरोपैथ के मशविरे से मीठा सोडा का (मात्रा तय करके) सेवन करते हैं तो यह न सिर्फ़ अन्य साधनों के साथ रोग के ठीक होने में मददगार साबित होता है बल्कि इसके शरीर के अन्य भागों में फैलने से भी रोकता है. ट्यूमर आदि में यदि मीठे सोडे के गाढ़े घोल में सूती कपड़े की पट्टी भिगोकर रखी जाय तो उससे भी बहुत फायदा होता है. इतना ही नहीं, यह कैंसर के एलोपैथी इलाज के रिकवरी पीरियड में की जाने वाली ‘कीमोथेरेपी’ से प्रचुर मात्रा में जनित एसिड के साइड एफ्फ़ेक्ट्स को भी नियंत्रित करने में पूर्णतः सक्षम है.

अमेरिकी अस्पतालों में चल रही वे शोध परियोजनाएं अपने अंतिम चरण में हैं, जिनके ज़रिये यह जानने की कोशिश हो रही है कि गंभीर कैंसर रोगियों को होने वाली असहनीय पीड़ा से बचाव के लिए साइड एफ़ेक्ट्स से मुक्त पेन किलर के रूप में मीठा सोडा का उपयोग किस हद तक सार्थक हो सकता है?

डॉ.जेता सिंह बताते हैं कि यूटीआई (मूत्र नली संक्रमण) में मीठा सोडा के घोल का सेवन बहुत असरदार दवा के रूप में साबित हुआ है. इसी तरह गर्भ धारण में विफलता के मामले में भी इसकी असरदार भूमिका की अनेक ‘सक्सेज़ स्टोरीज़’ हैं. आँखों का तेज़ी से ख़राब होना, दांतों का तेज़ी से घिसना, जॉन्डिस, एक्ज़िमा, सोरायसिस जैसी बीमारियों में मौखिक सेवन और गाढ़े घोल में पट्टियां भिगोकर रखने से रोग तेज़ी से घटते हैं.

बीपी कंट्रोल और ह्रदय सम्बन्धी रोगों में ह्रदय के भीतर की नसों की जठरावस्था और उनके भीतर बढ़ते फैट की प्रवत्ति के विरुद्ध भी मीठा सोडा एक उत्तम इलाज है. इसका नियमित सेवन तो ह्रदय रोगियों के लिए प्राण वायु सामान है ही, सभी अस्पताल और प्रसिद्ध ह्रदय रोग संस्थान अपने विशालकाय स्टोर्स में पाउडर, इंजेक्शन और इंट्राविनस बोतलों के रूप में इसे बड़ी तादाद में सहेज कर रखते हैं ताकि आपातकाल में ह्रदय रोगियों का जीवन बचाने में इनका उपयोग किया जा सके.

खाना खाने के बाद मुंह, गले और पेट में होने वाली जलन के पीछे एसिड बढ़ने की प्रवृत्ति है, इसे ज़्यादातर लोग जानते हैं और इससे जूझने के लिए वे मीठा सोडा का इस्तेमाल पीढ़ियों से करते भी आये हैं. इसकी मात्रा और इसे लेने की टाइमिंग को लेकर अलबत्ता लोगों में बड़ा संशय रहता है. वैसे तो सोडा लेने की आदर्श स्थिति ख़ाली पेट के वक़्त 2-3 टाइम है. जिन लोगों को खाना खाते ही एसिडीटी उभर आने की प्रवृत्ति है, बेहतर है वे इसे नियमित तौर पर ख़ाली पेट तीन बार लें.

यदि वे ऐसा नहीं कर पाते हैं और खाना खाते ही संकट में आ जाते हैं, उस स्थिति में उन्हें 200 मिली.पानी में एक छोटा चम्मच सोडा घोलकर पी लेना चाहिए. पानी में मिला मीठा सोडा एक क्षारीय तत्व है. यह अमाशय में व्याप्त एसिड के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया करता है और परिणामस्वरूप पानी, लवण और कार्बन डाईऑक्साइड का निर्माण होता है, जिससे मितली और बदहज़मी से शरीर को राहत मिलती है. इसे लेने के बाद लेकिन किसी भी अवस्था में एक घंटा कुछ भी नहीं खाना-पीना चाहिए अन्यथा यह विषपायी भूमिका में आ जाता है.

कुछ ज़हरीला खा लेने वाले लोगों को भी मीठा सोडा (इंजेक्शन और इंट्राविनस) देकर उनके शरीर में व्याप्त विष कम किया जाता है. ज़हरीले कीड़ों के काटने से होने वाली एलर्जी और दूसरी समस्याओं में मीठा सोडा का सोल्यूशन रगड़ कर लगाने से तत्काल राहत मिलती है.

पायरिया व दांतों की अन्य बीमारियों में भी मीठा सोडा बड़ी मुफ़ीद दवा है. एक छोटा चम्मच सोडा में चंद बूंदे पानी की डालकर हल्के हाथों से टूथपेस्ट की तरह मसूड़ों में रगड़ने से विभिन्न दांत सम्बन्धी रोगों में लाभ पहुँचता है. गंदे और पीले दांतों की साफ़-सफ़ाई भी इसी प्रकार की जा सकती है. यह दांतों को चमकाकर सफ़ेद कर डालता है. मीठा सोडा मिले पानी की कटोरी में कृत्रिम दांतों को निकाल कर अच्छे से धोने से बत्तीसी (डेन्चर) चमक उठती हैं. आधा कप पानी में छोटा (आधा) चम्मच मीठा सोडा का घोल एक अद्भुत ‘माउथ फ्रेशनर’ की भूमिका में बदल जाता है. यह न सिर्फ़ दांतों की जड़ों और मसूड़ों में मौजूद बैक्टीरिया और दूसरी गंदगी का सफाया कर डालता है बाक़ी मुँह के स्वाद को भी बेहतरीन बना देता है.

अब जानिये इसके ‘कॉस्मेटिक’ इस्तेमाल. एक अच्छे ‘फेशियल’ के रूप में मीठा सोडा बड़ा क़ारगर है. यह चेहरे को साफ़ करके चमका तो देता है लेकिन अन्य केमिकल युक्त ‘फेशियल’ की तरह आपकी त्वचा या चेहरे की मांसपेशियों को बिल्कुल क्षति नहीं पहुंचता. मीठा सोडा एक प्राकृतिक ‘डिओड्रेंट’ है. बांहों की बगल और जाँघों के जोड़ों में इसके घोल का स्प्रे करने से पसीने की दुर्गन्ध देर तक नहीं उठती. दुर्गन्ध पैदा करने वाले बैक्टीरिया को यह मिटा देता है. नहाने के पानी की बाल्टी के पानी में आधा कप मीठा सोडा डालकर घोल बना कर यदि उस पानी से स्नान किया जाय तो किसी साबुन की ज़रुरत नहीं पड़ती. यह पसीना और तैलीय त्वचा-दोनों की सफ़ाई करके शरीर को तरोताज़ा बना देता है. सिर के बालों में इसका गाढ़ा घोल लगाकर धोने से यह किसी भी अच्छे शैम्पू की तुमला में ज़्यादा असरदार और रसायनरहित साबित होता है. अपवाद के बतौर कुछ लोगों की खोपड़ी की त्वचा को मीठा सोडा सूट नहीं भी करता है, उन्हें इसका सिर में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

सब्ज़ियां, सलाद वनस्पति और फलों की पैदावार बढ़ाने के लिए हाल के सालों में न सिर्फ़ भारी भरकम रासायनिक फर्टिलाइज़र की मदद ली जाती है बल्कि तैयार फ़सल को कीटों से बचाने के नाम पर भांति-भांति के पेस्टिसाइड्स और सब्ज़ियों और फलों का साइज़ बढ़ाने के व्यापारिक लालच में अनेक ज़हरीले केमिकल्स इस्तेमाल किए जाते हैं. नतीजा यह होता है कि ये फल और सब्ज़ियां फायदा पहुंचाने की जगह हमारे शरीर का नुकसान ज़्यादा करते हैं. आजकल होने वाली कैंसर सरीखी कई बीमारियों की जड़ में यही पेस्टिसाइड्स और कैमिकल्स हैं. इन केमिकल और पेस्टीसाइड से बचाव में भी मीठा सोडा हमारी काफी हद तक मदद कर सकता है बशर्ते इसका समुचित उपयोग किया जाय.

यदि एक लीटर साफ़ पानी में एक बड़ा चम्मच सोडा डालकर घोल तैयार किया जाए और इस घोल में 700-800 ग्राम तक (साफ़ पानी में अच्छे से धुली) सब्ज़ी, सलाद वनस्पति या फल आदि को 10 से 15 मिनट तक पूरा डुबो कर रखा जाय और तब बाहर निकाल कर साफ़ पानी से धोकर खाया जाय तो पेस्टीसाइड और कैमिकल्स काफी हद तक बेअसर हो जाते हैं. वस्तुतः ये सभी पेस्टिसाइड्स और केमिकल्स एसिड आधार वाले होते हैं. मीठा सोडा का क्षारीय तत्व रासायनिक प्रतिक्रिया करके उनके एसिड को लवण में बदल देता है और इस तरह उनकी विषपायी भूख मृतप्राय हो जाती है.

इन तमाम उपयोगी भूमिकाओं के साथ-साथ सबसे बड़ी बात है मीठा सोडा के दाम. बेहद सस्ते दामों में उपलब्ध खाया जा सकने वाला यह रासायनिक तत्व शहर, क़स्बों और गांव सभी जगह के बाज़ारों में मिलता है. क़रीब 30 रुपये प्रति किलो की दर से खुदरा बिकने वाले सोडा का थोक भाव 50 किलो की ‘टाटा सोडा’ की बोरी 1500 रुपये के आसपास मिल जाती है.

मीठा सोडा मूलतः एक केमिकल है, इसलिए किसी भी रोग के लिए इसे इस्तेमाल करने से पहले इसकी मात्रा और फ्रीकवेंसी आदि के बारे में किसी योग्य नेचुरोपैथ चिकित्सक से राय ज़रूर ले लेनी चाहिए वरना कुछ मामलों में यह नुकसान भी पहुंचा सकता है.

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