देखिए तो अब सर-ए-बाज़ार रुस्वा कौन है

कहानी एक लफ़्ज़ की | सौदा.
सौदागर यानी कि सौदा बेचने वाला, वणिक्, तिजारती, कारोबारी और इस लिहाज से सौदा के मायने हुए बेचने का सामान. साबिर ज़फ़र कहते हैं – मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया/ जिस से जो व’अदा किया पूरा किया. हालांकि दुनिया में ऐसे घाटे का सौदा दीवाने ही करते हैं. न हो तो किसी भी वायदा करने वाले को याद करके देख लीजिए, वायदाफ़रामोश ही याद आएंगे.
‘सौदा’ जो बे-ख़बर है वही याँ करे है ऐश/ मुश्किल बहुत है उन को जो रखते हैं आगही. जिन मोहम्मद रफ़ी का यह शेर है, वह 18वीं सदी के शायर थे, मीर तक़ी मीर के समकालीन थे और तख़ल्लुस सौदा करते थे. तो सौदा का अर्थ प्रेम भी है, इश्क़, दीवानापन, जुनून, ख़ब्त, पागलपन, मस्तिष्क-विकार है. तुम ‘इंशा’-जी का नाम न लो क्या ‘इंशा’-जी सौदाई हैं…यह लफ़्ज़ सौदाई जो है, उसका अर्थ प्रेमी भी है और विक्षिप्त भी, आशिक भी है और सनकी भी. सौदाज़दगी पागलपन है.
सौदा से सौदा-सुलुफ़ बना है यानी कि बाज़ार से खरीदी जाने वाली चीज़ें, सौदा पटना मतलब ख़रीद-फ़रोख़्त का मामला तय होना, सौदा पटाना मोल-भाव करके क़ीमत तय करना, सौदा होना माने उन्मादी होना और सौदा उछलना सनक सवार होना है.
और बक़ौल आग़ा अकबराबादी,
हम न कहते थे कि सौदा ज़ुल्फ़ का अच्छा नहीं
देखिए तो अब सर-ए-बाज़ार रुस्वा कौन है.
सम्बंधित
अपनी राय हमें इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.
संस्कृति
-
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
-
हुक़्क़ाः शाही ईजाद मगर मिज़ाज फ़क़ीराना
-
कला में राजनीति
-
किसी कहानी से कम दिलचस्प नहीं किरपाल कजाक की ज़िंदगी
-
अंबरांतः संवेदना जगाती अनंत की कलाकृतियां
-
हे साधकों! पिछड़ती हिन्दी का दोष किसे दें
-
किताबों की दुनियाः सुभाष कुशवाहा की पसंद
-
फॉर्म या कंटेंट के मुक़ाबले विचार हमेशा अहम्