सुना है मक़्तल में आज कोई क़तील-ए-हसरत शहीद होगा

कहानी एक लफ़्ज़ की | शहीद
वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो/ पुकारते हैं ये ज़मीन-ओ-आसमां शहीद हो.राजा मेहदी अली ख़ान का लिखा हुआ यह गीत मोहम्मद रफ़ी ने ‘शहीद’ फ़िल्म में गाया है.
शहीद अरबी ज़बान से हिन्दुस्तानी में आया. इसके मायने हैं- वह जो धर्मयुद्ध में शत्रु से लड़ता हुआ मारा गया हो. इसके उर्दू समानार्थी हैं – जाँ-निसार, वसीक़ा और क़ुर्बान. हिन्दी में इसके मायने हुतात्मा, बलिदानी, युद्ध मृत या वीरगति पाने वाला शख़्स हैं.
इसी से बने लफ़्ज़ शहीदे आज़म, शहीदे वतन, शहीदे कर्बला और शहीदे इश्क़ भी अमल में हैं. शहादत के मायने बलिदान देना तो है ही, साक्षी और गवाह भी हैं. पंडित जवाहर नाथ साक़ी कहते हैं,
सुना है मक़्तल में आज कोई क़तील-ए-हसरत शहीद होगा
हुई जो शोहरत ये शहर में है हर इक तरफ़ एक सनसनी है.
शायरों के यहाँ अलबत्ता शहीद और शहादत के एक मायने और हैं, आशिक़ की शहादत. और यही एक लफ़्ज़ शहीद जब अकबर इलाहाबादी को बरतना होता है तो देखिए कि मायने किस तरह बदल जाते हैं, अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से/ लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से.
और एक शेर और देखिए, शायर का नाम मालूम नहीं,
क़ातिल तिरी गली भी बदायूँ से कम नहीं
जिस के क़दम क़दम पे मज़ार-ए-शहीद है.
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देखिए तो अब सर-ए-बाज़ार रुस्वा कौन है
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