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इतिहास










रेवाड़ी रेलवे हेरिटेज म्युज़ियम | स्टीम इंजनों का ठिकाना

  • 18:06:PM
  • 23 December 2020

रेवाड़ी रेलवे हेरिटेज म्युज़ियम गुज़रे ज़माने के कई स्टीम इंजनों का ठिकाना है. ऐतिहासिक महत्व के इन इंजनों में कई चालू हालत में हैं. फ़ेयरी क्वीन को इनमें सबसे ज़्यादा पहचाना जाता है. कई बार यह इंजन सवारी डिब्बों के साथ नई दिल्ली से रेवाड़ी के बीच चलता भी है.

 

फेयरी क्वीन
निर्माण: सन् 1855
निर्माताः किटसन, थॉम्सन एण्ड हेवीट्सन, लीड्स, यूके
गति: 40 किलोमीटर प्रति घंटा
इंजन: 130 हॉर्स पावर
इतिहास: पटरियों पर दौड़ने वाला यह दुनिया का सबसे पुराना स्टीम इंजन है. 1998 में इसे गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया. ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी के दिनों में कलकत्ता लाए गए इस इंजन को नाम मिला – कलकत्ता और कंपनी के फ़्लीट नंबर 22 में हावड़ा और रानीगंज के बीच सवारी गाड़ी खींचने वाला यह इंजन 1857 में फ़ौजी ट्रेन में चला. सेवा से बाहर होने के बाद 34 साल तक यह हावड़ा स्टेशन के बाहर खड़ा रहा. 1943 में इसे चंदौसी के रेलवे ट्रेनिंग स्कूल भेज दिया गया. राष्ट्रीय रेल म्युज़ियम में क़रीब 25 साल गुज़ारने के बाद पेराम्बूर वर्कशॉप में मरम्मत के बाद 18 जुलाई 1997 को यह फिर पटरी पर लौटा था.
सबसे हल्के स्टीम इंजनों में शुमार इस इंजन को ‘फ़ेयरी क्वीन’ नाम 1895 में मिला था.

 

 

 

आज़ाद
निर्माण: सन् 1947
निर्माताः बीएल़डब्ल्यू, फिलेडेल्फ़िया, यूएसए.
स्पीड: 100 किलोमीटर प्रति घंटा
इंजन: 1445 हॉर्स पावर
इतिहास: दूसरे विश्व युद्ध के बाद इंजनों की कमी को देखते हुए फ़िलेडेल्फ़िया की कम्पनी बैल्डविन लोकोमोटिव वर्क्स को डब्ल्यूपी श्रेणी के 16 प्रोटोटाइप बनाने का आर्डर दिया गया था. सिल्वर कलर से बने स्टार और बुलेट की तरह की नाक वाले इन इंजनों को अलग से पहचानना बहुत आसान था. समझा जाता है कि डब्ल्यूपी-7200 15 अगस्त 1947 को भारतीय रेलवे को दिया गया पहला इंजन था और इसी वजह से इसको ‘आज़ाद’ नाम मिला. ‘आज़ाद’ मई 1987 में सेवा से अलग हुआ. ओवरहालिंग के बाद अब यह रेवाड़ी के रेलवे संग्रहालय का हिस्सा है.

 

अंगद
निर्माण सन्: 1930
निर्माताः वल्कन फ़ाउण्ड्री, लंकाशायर, इंग्लैंड
स्पीड: 75 किलोमीटर प्रति घंटा
इंजन: 1492 हॉर्स पावर
इतिहास: 198 मेट्रिक टन वजन और 14 फ़ीट आठ इंच लंबे इस इंजन का नाम रामायण के चरित्र बाली-पुत्र अंगद के नाम पर रखा गया. अपने नाम और काम दोनों में ही यह अंगद की तरह साबित हुआ. इसकी चौड़ाई भी दूसरे इंजनों के मुक़ाबले आधा फुट ज़्यादा है. अपनी श्रेणी के इंजनों में सबसे भारी यह इंजन माल की ढुलाई के लिए इस्तेमाल होता रहा. 2013 में अमृतसर वर्कशॉप में मरम्मत के बाद यह रेवाड़ी लोको शेड में लाया गया.

अकबर
निर्माणः सन् 1965
निर्माताः चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, पश्चिम बंगाल
स्पीड: 110 किलोमीटर प्रति घंटा
इतिहास: डब्ल्यूपी 7161 ख़ालिस स्वदेशी स्टीम इंजन है और इस श्रेणी के बचे हुए ऐसे इंजनों में से एक जो चालू हालत में हैं. चितरंजन कारख़ाने में बने सवारी गाड़ी के इस इंजन को मुगल बादशाह अकबर का नाम मिला. अकबर का इस्तेमाल ग़दर, भाग मिल्खा भाग, गांधी माई फ़ादर, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर समेत फ़िल्मों में हुआ. नवंबर, 2017 में बिना ड्राइवर के दो किलोमीटर तक चलकर दुर्घटनाग्रस्त होने की वजह से अकबर ख़बरों में रहा.

26 जनवरी 1950 को शुरू हुए चितरंजन के कारख़ाने में डब्ल्यूजी श्रृंखला का पहला इंजन नौ महीने में बनकर तैयार हुआ था. इसे ‘देशबंधु’ नाम मिला और एक नवंबर 1950 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से इसे झंडी दिखाकर रवाना किया. मालगाड़ी में इस्तेमाल होने सौ इंजन चितरंजन में बनाए जाने थे, जिनमें से शुरुआती दस इंजन विदेश से आयातित पुर्ज़ों को जोड़कर बने.

सन् 1970 में यहाँ बना मालगाड़ी का आख़िरी इंजन डब्ल्यूजी 10560 था, जिसे ‘अंतिम सितारा’ नाम दिया गया था. फरवरी 1963 में चितरंजन कारख़ाने में सवारी गाड़ी का पहला इंजन बना – डब्ल्यूपी1 7060. स्वामी विवेकानंद की जन्म शती की स्मृति में इसे ‘विवेकानंद’ नाम दिया गया.
रेवाड़ी के रेल म्युज़ियम में ‘अंतिम सितारा’ का एक वर्किंग मॉडल देखा जा सकता है.

सभी फ़ोटो | prabhatphotos.com


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