सुबह-सुबह जब तैयार होकर निकलने की तैयारी कर रहा था, तो किसी ने टोका था – तैयारी तो ऐसे कर रहे हो जैसे डेट पर जा रहे हो! मैंने भी सहमति जताते हुए सिर हिलाया – हां, मैं डेट पर जा रहा हूं, अपनी पसंदीदा किताबों से मिलने, वह भी क़रीब 25 साल बाद. [….]
पारसी थिएटर के उस दौर में जब आग़ा हश्र कश्मीरी के नाटकों की धूम हुआ करती थी, उनकी ज़िंदगी और शान-ओ-शौक़त के क़िस्सों में भी लोगों की दिलचस्पी कम न थी. बक़ौल फ़िदा हुसैन नरसी ‘सीता वनवास’ लिखाने के लिए उनको पचास हज़ार रुपये फ़ीस मिली – तीस हज़ार नक़द और बीस हज़ार का शराब-ख़र्च. हक़ीक़त और फ़सानों के बीच जिये आग़ा हश्र पर ‘उर्दू के बेहतरीन संस्मरण’ में संकलित सआदत हसन मंटो के लिखे का एक हिस्सा, [….]
प्रयागराज | ममता कालिया की किताब ‘जीते जी इलाहाबाद’ का लोकार्पण सोमवार को साहित्यिक-सांस्कृतिक बिरादरी बीच हुआ. संस्मरण के रूप में लिखी इस किताब में इलाहाबाद की आधी सदी का साहित्यिक-सांस्कृतिक परिवेश, इतिहास, समाज, मानवीय और भावनात्मक दस्तावेज़ के रूप में दर्ज हुआ है. आयोजन उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में हुआ. [….]