आज़ादी आंदोलन में जब हिंदी के महत्वपूर्ण लेखक क़लम चलाने के साथ ही पत्रिकाओं का संपादन भी कर रहे थे, उनका उद्देश्य पराधीनता से मुक्ति ही था. ‘प्रताप’, ‘इंदु’, ‘सरस्वती’, ‘ब्राह्मण’, ‘चाँद’ और ‘माधुरी’ सरीखी पत्रिकाएं साहित्य के उन्नयन साथ-साथ औपनिवेशिक दासता से ख़िलाफ़ जनजागरण की भावना से प्रेरित रहीं. [….]