बुंदेलखण्ड के टीकमगढ़ में मेरी ननिहाल है. मेरे नाना समशेर ख़ाँ वहाँ हर साल होने वाली ‘रामलीला’ में रावण का किरदार अदा करते थे. नानी के घर की दीवार पर आज भी रावण के गेटअप में उनकी तस्वीर के साथ एक और तस्वीर लगी हुई है [….]
लाहौर छोड़ने के बाद दिल्ली में कुछ वक़्त बिताकर साहिर लुधियानवी जब बंबई गए, तब तक उनका पहला संग्रह ‘तल्ख़ियाँ‘ छप चुका था और वह मशहूर हो चुके थे. अपनी ग़ज़लों, नज़्मों की बदौलत उन्हें ख़ूब शोहरत और अवाम का ढेर सारा प्यार मिला. [….]
लैटिन से फ़्रेंच तक आने में ऑमलेट ने लंबा सफ़र किया है मगर दुनिया की कितनी ही ज़बानों में यह इसी नाम से पुकारा जाता है. डेनिश, पोलिश, स्वीडिश, तुर्की, हिन्दी, अंग्रेज़ी में इसके उच्चारण में भेद ज़रूर है मगर लफ़्ज़ यही है. [….]
ख़ुशदिल | कपिल देव की यह तस्वीर उनके लाखों प्रशंसकों के लिए राहत का पैग़ाम है. परसों देर रात को ओखला के अस्पताल में भर्ती हुए कपिलदेव की एंजियोप्लास्टी हुई थी. [….]
उर्दू की मॉडर्न कहानी के चार स्तंभ रहे. तीन का भार मर्दाने कन्धों पर था – कृश्नचन्दर, राजिंदर सिंह बेदी और सआदत हसन मंटो. चौथा कंधा ज़नाना था. इस अकेले स्तंभ में इतनी ताक़त रही कि इन्हें ‘मदर ऑफ़ मॉडर्न स्टोरी’ कहा गया. [….]
आपको ‘उमराव जान’ की ख़ानम जान की याद है! और ‘बाज़ार’ की हजन बी! ‘सलाम बाम्बे’ के रेडलाइट एरिया के कोठे की मालकिन!! हालांकि यह उनकी शख़्सियत का एक पहलू है. शौकत कैफ़ी ने लम्बे अर्से तक पृथ्वी थिएटर और इप्टा में सक्रिय रहीं [….]
एक कैफ़ियत होती है प्यार. आगे बढ़कर मुहब्बत बनती है. ला-हद होकर इश्क़ हो जाती है. फिर जुनून. और बेहद हो जाए तो दीवानगी कहलाती है. इसी दीवानगी को शायरी का लिबास पहना कर तरन्नुम से पढ़ा जाए तो उसे मजाज़ कहा जाता है. [….]
अनलॉक 5.0 | सरकार ने 15 अक्टूबर से सिनेमा घर खोलने की इज़ाजत दे दी है. टिकटों की ज़्यादा से ज़्यादा ऑनलाइन बुकिंग की अपेक्षा की गई है, साथ ही निर्देश दिए हैं कि कुल क्षमता के आधे दर्शक ही हर शो में सिनेमा देख सकेंगे. यानी दो दर्शकों के बीच एक सीट ख़ाली रहेगी. [….]
शायर होने के साथ-साथ हसरत मोहानी जंगे आज़ादी के सिपाही भी थे. वही थे, जिन्होंने ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारा दिया. संविधान सभा के वह अकेले ऐसे मेम्बर थे, जिन्होंने संविधान पर अपने दस्तखत नहीं किये. उन्हें लगता था कि देश के संविधान में मजदूरों और किसानों की हुकूमत आने का कोई ठोस सबूत नहीं है. [….]
दोहे जो किसी समय सूरदास, तुलसीदास, मीरा की ज़बान से निकलकर लोक जीवन का हिस्सा बना, हमें हिन्दी पाठ्यक्रम की किताबों में मिले. थोड़ा ऊबाऊ. थोड़ा बोझिल. लेकिन खनकती आवाज़, भली सी सूरत वाला एक शख़्स, जो आधा शायर रहा और आधा कवि, दोहों से प्यार करता रहा. [….]