कमलेश्वर शह्रयार को ख़ामोश शायर मानते हैं. एक ऐसा ख़ामोश शायर कि वह जब इस कठिन दौर व ख़ामोशी से जुड़ता है, तो एक समवेत चीख़ती आवाज़ में बदल जाता है. बड़े अनकहे तरीके से अपनी ख़ामोशी भरी शाइस्ता आवाज़ को रचनात्मक चीज़ में बदल देने का यह फ़न शह्रयार की महत्वपूर्ण कलात्मक उपलब्धि है. [….]