मई 1394 में जब मलिक सरवर गवर्नर बनकर यहां आया तो उसने राजधानी ज़फ़राबाद से जौनपुर कर दी. वह यहां आया तो शहर वैसा ही खंडहर था, जैसा फ़िरोज तुगलक ने देखा था, जब उसने यहां शहर बसाने की सोची थी. [….]
कोई पांच दशक पुरानी बात होगी, इलाहाबाद में हमेशा की तरह कुंभ पड़ा था. मैं कीडगंज में अपनी ननिहाल आया हुआ था. ननिहाल में रहना मुझे बहुत भाता था. हर उसे मौक़े पर जब छुट्टी हो, मैं वहीं चला जाता. ख़ासतौर से कुंभ मेला हो, हर साल पड़ने वाला माघ मेला हो या दधिकांदो का जुलूस… मेले का कोई मौक़ा हो, मैं वहीं होता था तो उस कुंभ [….]
गर एक अरसा बीत जाने के बाद भी एक छूटे शहर की सुबहें आपको याद आएं और वे आपके कांधे पर बैठ हौले-हौले मुस्कुराएं, गर उस शहर की दोपहरें बेचैन करने लगें और उन दोपहरों की धूप आपके साथ खिलखिलाए, गर उस शहर की शामें आपको सुकून से भर देती हों और आपके साथ हाथ में हाथ डालकर जब-तब चहलकदमी करने लगती हो तो समझना चाहिए कि [….]