बरेली | साहित्य अपने पाठकों को सुकून या तसल्ली दे सकता है, लेकिन यह हमेशा ज़रूरी नहीं, अच्छा साहित्य अपने दौर के सवालों के जवाब मांगता है, पढ़ने वाले का सुकून छीनकर उसे बेचैन भी करता रहता है. यही बेचैनी वक़्त की कसौटी पर उसकी अहमियत तय करती है. [….]
चचा रामगोपाल के कंधे पर टिका सिर मैंने उठाया तो उनका चेहरा धुंधला नजर आया. तब मुझे लगा कि मेरी आंखों में आंसू तैर रहे हैं. वह कह रहे थे, ‘अब तो चचा के गले लग जाओ बेटा, मतदान हो चुका. जो होना होगा वह पेटी में बंद हो चुका है. समझो, चुनाव ख़त्म हुआ.’ [….]
ग्रीक देवताओं की ज़मीन पर जन्म के बाद जब होश संभाला तो अपनी जड़ें याद आईं. जुनून की हद तक संगीत के शौक के साथ बड़ी हुई और तालीम के साथ ही अपने मुकाम की खोज में निकल पड़ीं. भारतीय संगीत पसंद था पर कोई सिखाने वाला न मिला तो एकलव्य की तरह अपनी साधना शुरू की. [….]