और एक बार आज फिर संयोग! पर संयोग की बात थोड़ा रुककर! पहले यह कि यूँ तो वैसे उस जुड़ाव के बाद अक्सर याद आते हैं. लगभग हर रोज़ याद आते हैं. कभी-कभी तो दिन में कई-कई बार याद आते हैं. [….]
(शह्रयार हमारे दौर के मक़बूल अदीब, शिक्षक और शायर रहे हैं. फ़िल्मों की मार्फ़त उनकी ग़ज़लों ने ऐसा अलग रंग और ख़ुशबू बिखेरी है कि उन्हें सुनते वक़्त शह्रयार की याद किसी झोंके की तरह बरबस चली आती है. डॉ. प्रेम कुमार ने समय-समय पर उनसे लंबी बातचीत की थी [….]
बात साल 2017 की है. उस वक़्त अचानक मेरी नौकरी छूट गई थी. ख़ुद को बदहवासी से बचाए रखने के लिए अपनी पसंद का जो कुछ पढ़ सकता था, पढ़ने लगा. यह मेरा आजमाया हुआ नुस्ख़ा था क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में दो-चार होता रहा हूं. [….]
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भारतीय भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन और शोध का केंद्र. उतरते अंधेरे के बीच की उस नाकाफ़ी रौशनी में खुले में कुर्सी पर बैठकर कविता सुनाते नरेश सक्सेना. दो घंटे तक एकाग्रभाव से दत्तचित्त होकर उनका काव्यपाठ सुनते प्राध्यापक, रचनाकर्मी और शोधछात्र. [….]
हिंदुस्तानी सिनेमा में यथार्थवाद की बुनियाद रखने वाले बिमल रॉय ऐसे फ़िल्मकार हुए, जिन्हें ‘स्कूल’ का दर्जा हासिल है और जो जीते-जी किंवदंती बन गए. हिंदी की महान फ़िल्मों की कोई सूची उनकी फ़िल्मों के ज़िक्र के बग़ैर पूरी नहीं होती. [….]
कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार, पत्रकार, स्तंभकार, संपादक, स्क्रिप्ट राइटर और नौकरशाह, ये सभी भूमिकाएं किसी एक शख़्स की हों तो कोई भी पूछ सकता है – अच्छा, कितने कमलेश्वर! [….]
बेहद तपती हुई दोपहर थी वह. मन में भी तपती-सी एक आशंका थी कि कहीं आज फिर डॉ.गोपीचन्द नारंग की व्यस्तता बातचीत को आगे के लिए स्थगित न करा दे. पर साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष के उस वातानुकूलित ऑफ़िस में प्रवेश के साथ ही नारंग जी के वाक्यों व व्यवहार ने मन को शीतल कर आश्वस्त किया [….]
पूरब देस में डुग्गी बाजी फैला सुख का हाल दुख की अगनी कौन बुझाए सूख गए सब ताल जिन हाथों में मोती रोले आज वही कंगाल आज वही कंगाल भूका है बंगाल रे साथी भूका है बंगाल [….]
आचार्य चतुरसेन ने चालीस के क़रीब उपन्यास लिखे हैं, पर ‘वैशाली की नगरवधू’ उनके सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है. इस उपन्यास के बारे में उन्होंने ख़ुद कहा था, ‘मैं अब तक की सारी रचनाओं को रद्द करता हूं और ‘वैशाली की नगरवधू’ को अपनी एकमात्र रचना घोषित करता हूं.’ इसी उपन्यास का यह अंश… [….]
कुमाऊं वालों के ‘कारपेट साहेब’ और ज़माने भर में ‘जेंटिलमैन हण्टर’ के नाम से मशहूर हुए जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट अपनी ज़िंदगी में ऐसे कितने ही विशेषणों से नवाजे गए. दुनिया ने उन्हें शिकारी के तौर पर जाना, शिकार के उनके क़िस्सों और दिलचस्प क़िस्सागोई के दीवाने बेशुमार हैं [….]