एक क़िस्सा है कि किसी साधु के पास कोई चना लेकर गया और कहा, ‘महाराज चना लाया हूं, भोग लगा लें.’ साधु ने कहा, ‘रख दो, जब लड्डू बन जाएगा तो भोग लगा लूंगा.’ शिष्य को आश्चर्य हुआ, चना लड्डू कैसे बन जाएगा? उसने सोचा आज यहीं बैठ कर देखता हूं [….]
इब्राहिम अल-क़ाज़ी भारतीय रंगमंच में उस किंवदंती की तरह है जो हमारी पीढ़ी तक दंतकथाओं के रास्ते पहुंचे हैं. ठीक वैसे ही जैसे भारतीय मिथकों और महाकाव्यों का पारायण किए बिना हम उनका अधिकांश जानते हैं या जानने का दावा करते हैं. इसी तरह हमारी पीढ़ी के लोगों तक अल-क़ाज़ी साहब अनेक स्रोतों से पहुंचे थे. [….]
नॉर्थ कैरोलिना की वेक फ़ॉरेस्ट यूनिवर्सिटी में मेरे स्कूल की बिल्डिंग दस मिनट पैदल की दूरी पर है. सुबह-सुबह कैम्पस में बहुत कम ही लोग दिखाई पड़ते हैं – ज़्यादातर बुज़ुर्ग और बस के इंतज़ार में खड़े स्कूली बच्चे. दस मिनट की यह वॉक मुझे बरेली कैण्ट में कर्नल सहाय के साथ मॉर्निंग वॉक की याद दिलाती है. [….]