हर शहर का एक साहित्यिक आभामंडल होता है. उस आभामंडल में तमाम सितारे होते हैं जो आंखों को चकाचौंध से भर देते हैं. लेकिन जब आप उस चकाचौंध को पार कर कुछ गहरे उतरते हैं तो कुछ मद्धिम शीतल प्रकाश लिए ऐसे सितारे होते हैं, जो आत्मा को दीप्त कर देते है. [….]
जिस दौर में हम जी रहे हैं, लिखने वालों का एक तबका ख़ासे मशीनी ढंग से लिखे जा रहा है, इसमें अख़बारी लेख-विश्लेषण से लेकर कविता-कहानी सब शामिल हैं. और ऐसी कविताएं संवेदना के अर्थ में तो मशीनी लगती ही हैं, उनकी तादाद भी इसी बात की ताईद करती है. [….]
हम इसलिए अमन चाहते हैं कि आज ज़ुल्मात-ए-जंग में आबे-ज़िन्दगी मिल नहीं रहा है और अमन ही ख़िज़्र-ए-ज़िंदगी है [….]
गोपालदास सक्सेना को ज़माना नीरज के नाम से पहचानता है. कुछ लोग उन्हें मंच के मार्फ़त पहचानते रहे तो कुछ फ़िल्मी गीतों के ज़रिये और ऐसा एक तबका हमेशा रहा जो उनके गीतों के आसान अल्फ़ाज़ और उनमें निहित दर्शन को बूझकर मगन होता. अब जब वह नहीं हैं, उनकी कविताएं उनके गीत रूह को तस्कीन बख़्शते हैं. [….]
लाहौर छोड़ने के बाद दिल्ली में कुछ वक़्त बिताकर साहिर लुधियानवी जब बंबई गए, तब तक उनका पहला संग्रह ‘तल्ख़ियाँ‘ छप चुका था और वह मशहूर हो चुके थे. अपनी ग़ज़लों, नज़्मों की बदौलत उन्हें ख़ूब शोहरत और अवाम का ढेर सारा प्यार मिला. [….]