(माँ का होना इस क़ायनात की हर शै के लिए नेमत है. बढ़ती उम्र और समझ के साथ रिश्ता जताने वाला यह एक लफ़्ज़ और मानीख़ेज़ होता चला जाता है, ममत्व की छटाओं के रंग पहले से ज़्यादा साफ़ और चटख़ होते चले जाते हैं, ज़िंदगी की ख़ुशियों और ग़म में भी माँ का साथ होना किस क़िस्म का संबल, कैसी तसल्ली होती है, कौन नहीं जानता. राजिंदर जी का यह [….]