प्रयागराज | शरद कोकास की एक कविता है – देह. देह के विकास की गाथा और इसके इतिहास का आख्यान भी. तमाम सभ्यताओं की विकास यात्रा कराती यह कविता देह के मशीनों में तब्दील होते जाने के साथ ही इंसानी सभ्यता पर भावी ख़तरों से हमें आगाह भी करती है. [….]
– अतीत जानने के लिए पढ़ना होगा, गढ़े हुए क़िस्सों से इतिहास नहीं बनता –
एक बार क़ुतुबमीनार देखने गया. वहाँ के गाइड ने बताया के यह ग़ुलाम वंश के पहले बादशाह क़ुतुबउद्दीन ऐबक के नाम पर बनी है, पर दर हक़ीक़त वो वहीं पास में आराम फ़र्मा रहे एक सूफ़ी बुज़ुर्ग हज़रत बख़्तियार क़ुतुब काकी के नाम पर है. [….]