पिठोरा बनाने वाले वह अकेले चित्रकार नहीं थे, और न ही झाबुआ के अपने भाभरा गांव में वह अकेले ‘लिखंदरा’ थे, फिर भी पिठोरा का ज़िक्र आते ही पेमा फत्या का नाम ख़ुद ब ख़ुद ज़ेहन में आता है. दुनिया के कितने ही संग्रहालयों-कला वीथिकाओं में उन्हीं पेमा के हाथ के बने पिठोरा संजोये हुए हैं, जिन्होंने पचास सालों से ज़्यादा वक़्त तक भाभरा के कितने ही घरों की भीत पर पिठोरा के चित्र उकेरे थे. पेमा फत्या का जाना एक कल्पनाशील चित्रकार का जाना है, [….]