और एक बार आज फिर संयोग! पर संयोग की बात थोड़ा रुककर! पहले यह कि यूँ तो वैसे उस जुड़ाव के बाद अक्सर याद आते हैं. लगभग हर रोज़ याद आते हैं. कभी-कभी तो दिन में कई-कई बार याद आते हैं. [….]
चचा रामगोपाल के कंधे पर टिका सिर मैंने उठाया तो उनका चेहरा धुंधला नजर आया. तब मुझे लगा कि मेरी आंखों में आंसू तैर रहे हैं. वह कह रहे थे, ‘अब तो चचा के गले लग जाओ बेटा, मतदान हो चुका. जो होना होगा वह पेटी में बंद हो चुका है. समझो, चुनाव ख़त्म हुआ.’ [….]
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भारतीय भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन और शोध का केंद्र. उतरते अंधेरे के बीच की उस नाकाफ़ी रौशनी में खुले में कुर्सी पर बैठकर कविता सुनाते नरेश सक्सेना. दो घंटे तक एकाग्रभाव से दत्तचित्त होकर उनका काव्यपाठ सुनते प्राध्यापक, रचनाकर्मी और शोधछात्र. [….]
(भारत में 15वां हॉकी विश्व कप 13 से 29 जनवरी के बीच खेला जाएगा. भुवनेश्वर और राउरकेला को इसकी मेज़बानी मिली है. हॉकी विश्व कप की शुरुआत सन् 1971 में हुई. भारत अब तक केवल एक बार ही चैंपियन बन सका है [….]
फ़ोटोग्राफ़र के तौर पर तजुर्बा हासिल करने के लिहाज़ से यों तो हर दिन ख़ास ही होता है. जब आप काम कर रहे होते हैं तो दरअसल कुछ नया सीख भी रहे होते हैं. फिर भी सन् 2015 मेरे लिए बेहद ख़ास और अहम् था. उस साल मैं बहुत फ़ुर्सत से घूमा-फिरा, साथ ही कड़ी मेहनत करके बहुत कुछ सीखा भी. [….]
चित्रकार श्रीमुनि सिंह पर दामोदर दत्त दीक्षित का आत्मीय संस्मरण उनकी किताब ‘जो मिले’ में ‘कला को समर्पित बहुमुखी प्रतिभा’ शीर्षक से शामिल है. दृश्यकला के कई रूपों में निष्णात श्रीमुनि सिंह के जीवनकाल में मिनियेचर उनकी पहचान बने. अपनी विकसित शैली के मिनियेचर. [….]
हमारे पर्व, त्योहार परम्परा सिर्फ़ मनोरंजन, सामजिकता, इतिहास की स्मृति ही नहीं हैं, सदियों से हमारे शिल्प, गीत, नृत्य, चित्रकला को सजाने-संवारने और पीढ़ी दर पीढ़ी उनको आगे ले जाने का माध्यम भी रहे हैं. [….]
‘जो मिले’ दामोदर दत्त दीक्षित के संस्मरणों की किताब है. इस किताब में उन बीस शख़्सियतों के संस्मरण हैं, लेखक ने जिन्हें क़रीब से जाना, उनकी विशिष्टताओं को महसूस किया और जिनसे उनका गहरा आत्मीय नाता रहा है. ख़ुमार बाराबंकवी पर उनके संस्मरण का एक अंश हम यहाँ छाप रहे हैं. [….]
‘अमी जतो दूर जाई, आमार संगे जाए एकटा नदीर नाम’, किसी कवि की यह कल्पना तब जैसे साकार होती हुई लगी, जब प्रयागराज के पिछले कुंभ में संस्कार भारती के गंगा मनुहार कार्यक्रम की संकल्पना के बारे में जाना. हमारे लोक जीवन में भी कहा गया है, ‘कोस-कोस पर बदले पानी, पाँच कोस पर बदले बानी’. [….]
कभी-कभी खेल के मैदान पर कुछ ऐसे दृश्य भी बन जाते हैं जो अपनी अंतर्वस्तु में इतने असरदार होते हैं कि खेल-प्रेमियों के दिलोदिमाग़ पर हमेशा के लिए दर्ज हो जाते हैं, अविस्मरणीय बन जाते हैं. 13 जुलाई 2002 को दुनिया ने लॉर्ड्स के मैदान पर भी ऐसा ही नज़ारा देखा था. [….]