उज्जैन में लगातार पानी बरस रहा है. इतना बरसा है कि क्षिप्रा ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही है. शहर के कई पुराने मोहल्लों में घरों की पहली मंज़िल तक पानी पहुँच गया है. लोगों को वहाँ से निकालकर सुरक्षित जगहों पर पहुँचाया जा रहा है. [….]
‘जवान’ मुक़म्मल तौर पर एक मसाला फ़िल्म है, जिसमें लेखक व निर्देशक एटली ने बेहद संजीदगी के साथ मसाला फ़िल्मों के तक़रीबन सारे तत्व मसलन एक्शन, कुछ हल्के-फुल्के लम्हे, बदला, सुरीला संगीत और सुमित अरोड़ा के चुटीले संवादों का बखूबी इस्तेमाल किया है. [….]
बरेली | शहर की नाट्य परंपरा को नए आयाम देने और सांस्कृतिक गतिविधियों में क़रीब दो दशकों से अपनी सक्रियता और पहल के लिए पहचाने जाने वाले डॉ. बृजेश्वर सिंह को पद्मश्री के लिए नामित किया गया है. [….]
पारिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण किरदार गिद्धों के संरक्षण की ज़रूरत दुनिया भर में महसूस की जा रही है. लोगों को इस बारे में समझने और सचेत होने के उद्देश्य से सितंबर के पहले शनिवार को ‘अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस’ मनाया जाता है. [….]
प्रयागराज | ‘बैकस्टेज’ के कलाकारों ने शुक्रवार को नाटक ‘बाज़ी’ की प्रस्तुति दी. असरदार रंगभाषा और प्रभावी अभिनय के साथ ही स्पेस के ख़ूबसूरत प्रयोग के लिए दर्शकों ने नाटक को ख़ूब सराहा. यह प्रस्तुति एंटोन चेखव की 1889 में लिखी कहानी ‘द बेट’ पर आधारित है, [….]
प्रयागराज | इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेजर ध्यानचंद छात्र गतिविधि केंद्र में ज्ञान पर्व के तीसरे दिन की ‘सिनेमा-रंगमंच की समीक्षा’ विषय पर कार्यशाला हुई. इसके पहले सत्र में बतौर विशेषज्ञ अमितेश कुमार ने प्रतिभागियों को सिनेमा और रंगमंच के समय और समाज से संबंध को समझने के गुर सिखाये. [….]
प्रशांत पंजियार ने 1984 में पेट्रिअट् अख़बार में फ़ोटोजर्नलिस्ट के तौर पर अपना कॅरिअर शुरू किया. बाद में दस साल तक इंडिया टुडे और फिर सात साल तक आउटलुक में फ़ोटोग्राफ़र-एडिटर रहे. तस्वीरों में अपनी कहन के हवाले से उन्होंने अलग पहचान बनाई. [….]
हाथी ताक़तवर जानवर भर नहीं है, वह बुद्धिमान और भावनात्मक रूप से संवेदनशील जानवर भी है. दुनिया के तमाम देशों में हाथी मनुष्यों की ज़िंदगी में उपयोगी साथी की तरह हमेशा से ही बने रहे हैं. [….]
(शह्रयार हमारे दौर के मक़बूल अदीब, शिक्षक और शायर रहे हैं. फ़िल्मों की मार्फ़त उनकी ग़ज़लों ने ऐसा अलग रंग और ख़ुशबू बिखेरी है कि उन्हें सुनते वक़्त शह्रयार की याद किसी झोंके की तरह बरबस चली आती है. डॉ. प्रेम कुमार ने समय-समय पर उनसे लंबी बातचीत की थी [….]
प्रभू हर्रफूलाल तो बहुत दिन से नहीं मिले. उनके पी.ए. मिल गए. मैनें हाल-चाल पूछा तो बोले – “बाबा तो फ़कीर हैं, झोला उठाकर चले गए थे पहाड़ों की तरफ़.” फिर बताया कि पहाड़ तो उनका घर है और बचपन से वो पहाड़ ही बनना चाहते थे. [….]