मधुकरी की-सी उस मीठी-अद्भुत गुंजार ने पेन का तो चल पाना ही दूभर कर दिया. सजग हुए कानों को लगा कि किसी की चूड़ियों ने धीमे से एक गीत गाकर चुपके-चुपके कुछ कहना चाहा है. देखने की बेताबी में नज़र घूमी तो दिखा कि अचानक एक देवदार ठीक बाज़ू में आ उगा है. या फिर गमकता-महकता-सा पूरा का पूरा एक बग़ीचा कमरे में लम्बवत आ खड़ा हुआ है [….]