फ़िराक़ गोरखपुरी की एक अकेली ज़िंदगी के इतने अफ़साने हैं कि एक अफ़साना छेड़ो, दूसरा ख़ुद ही चला आता है. उनकी बेबाकी और हाज़िरजवाबी के साथ ही ग़ुस्से और तुनकमिज़ाजी के कितने ही क़िस्से कहे-सुने जाते रहे हैं. [….]
मेहनतकशों के चहेते, इंकलाबी शायर मख़दूम मुहिउद्दीन का शुमार उन शख़्सियत में होता है, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी अवाम की लड़ाई लड़ने में गुज़ार दी. सुर्ख़ परचम के तले उन्होंने आज़ादी की तहरीक में हिस्सेदारी की और आज़ादी के बाद भी उनका संघर्ष असेंबली और उसके बाहर लोकतांत्रिक लड़ाइयों से लगातार जुड़ा रहा. [….]
साठ के दशक में हिन्दी साहित्य में नई कविता आंदोलन प्रमुख कवियों में चंद्रकांत देवताले का भी शुमार था. वे मुक्तिबोध, नागार्जुन, शमशेर, केदारनाथ अग्रवाल जैसे कवियों की परंपरा से आते थे. अपने अग्रज कवियों की तरह उनकी कविताओं में भी जनपक्षधरता और असमानता, अन्याय और शोषण के ख़िलाफ़ विद्रोह साफ़ दिखाई देता है. [….]