आम बोलचाल के शब्दों के मूल की तलाश बहुत बार ख़ासी दिलचस्प होती है. उन्हें मूल रूप में या अपनी ज़बान के मुताबिक ढालकर हम बोलते हैं, और वे सुनने वालों पर अपने मायने के साथ ज़ाहिर हो जाते हैं. भाषा की ईजाद भी तो इसी मक़सद से हुई थी. [….]
शब्द सामर्थ्य और शब्द भंडार हमारी अभिव्यक्ति की हद तय करते हैं. और अभिव्यक्ति की हमारी भाषा नए-नए शब्दों को समाहित करके समृद्ध होती रही है. ऐसे शब्द जिन्हें बरतने में लोक सहज हो, फिर वे शब्द किसी और ज़बान से आए हैं, [….]
ख़बर है कि अंग्रेज़ी का नवजात शब्द ‘ओके बूमर’ आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बहस की दिशा और दशा तय कर सकता है. ‘ओके बूमर’ शब्द का इस्तेमाल इन दिनों नई उम्र के युवा तब करते हैं, जब कोई उन्हें काफी देर उपदेश दे चुका हो. इसका सबसे नजदीकी हिन्दी अनुवाद -“अब बस करो बुढ़ऊ ..!” हो सकता है. [….]
कहानी एक लफ़्ज़ की | शहीद वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो/ पुकारते हैं ये ज़मीन-ओ-आसमां शहीद हो.राजा मेहदी अली ख़ान का लिखा हुआ यह गीत मोहम्मद रफ़ी ने ‘शहीद’ फ़िल्म में गाया है. [….]
कहानी एक लफ़्ज़ की | सौदा. सौदागर यानी कि सौदा बेचने वाला, वणिक्, तिजारती, कारोबारी और इस लिहाज से सौदा के मायने हुए बेचने का सामान. साबिर ज़फ़र कहते हैं – मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया/ जिस से जो व’अदा किया पूरा किया. [….]