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कुछ यादें, कुछ वाक़ये, कुछ लोग, कुछ हादसे, ग़म और ख़ुशियां, नाकामियाँ और कामयाबियाँ. कितने ही तजुर्बों से मिलकर ज़िंदगी बनती है…ज़िंदगी जिसे लेकर हर शख़्स का तजुर्बा मुख़्तलिफ़ है. ज़िंदगी को अलग-अलग रंगों में रगने वाले तजुर्बे. इनको ज़बान देना, कई बार तरतीब देकर फिर से जीना भी कमाल का तजुर्बा होता है. विज्ञापन की दुनिया [….]