पारसी थिएटर के उस दौर में जब आग़ा हश्र कश्मीरी के नाटकों की धूम हुआ करती थी, उनकी ज़िंदगी और शान-ओ-शौक़त के क़िस्सों में भी लोगों की दिलचस्पी कम न थी. बक़ौल फ़िदा हुसैन नरसी ‘सीता वनवास’ लिखाने के लिए उनको पचास हज़ार रुपये फ़ीस मिली – तीस हज़ार नक़द और बीस हज़ार का शराब-ख़र्च. हक़ीक़त और फ़सानों के बीच जिये आग़ा हश्र पर ‘उर्दू के बेहतरीन संस्मरण’ में संकलित सआदत हसन मंटो के लिखे का एक हिस्सा, [….]