महोबा | पहाड़ों वाले शहर में एक उम्मीद आज टूट गई. अलखराम ने तय किया है कि अब वह तभी घोड़ी चढ़कर दुल्हन विदा कराएंगे, जब उनकी मंगेतर बालिग घोषित कर दी जाएगी. वर और कन्या पक्ष के लोगों की कई दौर की बातचीत के बाद यही तय हुआ. [….]
महोबा | माधवगंज गाँव में अलखराम के ब्याह को लेकर शुरू हुई हलचलें अभी थमी नहीं है. अब ख़बर यह है कि अनुसूचित बिरादरी के अलखराम चाहें तो कल घोड़ी चढ़ सकते हैं. अफ़सरों के साथ ही गांव के लोग भी सहयोग करेंगे. [….]
दुधवा | मिट्ठू उर्फ मिथुन सोमवार को आख़िरकार दुधवा नेशनल पार्क पहुंच ही गया. चंदौली से चार महावतों के साथ ख़ास ट्रक में आए मिट्ठू को दक्षिणी सोनारीपुर रेंज की गुलरा चौकी पर लाया गया. [….]
महोबा | कुलपहाड़ तहसील. रोज़ जैसा ही मंज़र, लेकिन गर्मी कुछ ज्यादा…और पारा 39.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने के बाद भी तहसील परिसर में लोगों की भीड़. बेसब्री इस क़दर कि छोटी-सी ख़बर पर भी उछल पड़ते. और आख़िर में वह ख़बर आई, वह फ़ैसला जिसे सुनने के फेर में ही वे इतनी गर्मी में यहाँ डटे हुए थे. [….]
यों कहावत है कि ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’ मगर कहा तो यह भी गया है कि ‘हिम्मत-ए-मरदां तो मदद-ए-ख़ुदा’. ये कहानियाँ उन लोगों की हैं, जिन्होंने अपने संकल्प पूरे करने की ठानी और हौसला नहीं छोड़ा. [….]
बस्ती | समुद्र में डूब रहे जहाज से पानी में कूदे तो कई लोग मगर तूफ़ान का यह असर कि लहरें उन्हें ख़ूब ऊंचा उछाल रही थीं. बहते हुए वे सब एक-दूसरे से काफी दूर चले गए. तूफ़ान की भयावहता के बीच लाइफ़ जैकेट के भरोसे पानी में डूबते-उतराते हुए ज़िंदगी की आस छोड़ चुके थे. [….]
तीस मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाने की वजह सन् 1826 में इसी तारीख़ को देश में हिंदी के पहले अख़बार ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रकाशन की स्मृति है. कलकत्ते से छपना शुरू हुए इस हफ़्तावार अख़बार की उम्र हालांकि बहुत लंबी नहीं रही [….]
घाटमपुर | शहर के मुगल रोड पर टैंकर रोक कर ऑक्सीज़न बर्बाद करने वाले ड्राइवर के बारे में अब कुछ पता नहीं चल सका है. अफ़सर इस मामले में कार्रवाई करने की ज़िम्मेदारी से बच रहे हैं. [….]
कछुआ हमारी कहानी में ख़रगोश से दौड़ में जीता प्राणी भर नहीं है, और न ही धीमी गति की वजह से उलाहना का प्रतीक. यह दुनिया की सबसे पुरानी जीवित प्रजातियों में एक माना जाता है. [….]
यह उन दिनों की बात है जब डब्ल्यूडब्ल्यूएफ़ का वजूद नहीं था, वर्जिश करके बनाया हुआ बदन, खा-पीकर हासिल ताक़त और अखाड़े के उस्तादों से सीखे दाँव की आजमाइश के लिए लोग कुश्ती के मैदान में उतरते थे. इन्हीं में से कुछ हार कर तो कुछ नायक बनकर बाहर आते [….]