यह सच है कि दो बार की इन मुलाकातों से तब मुझे तो संतोष नहीं ही हुआ था, संतुष्ट वे भी नहीं थीं. तय हुआ था कि शिमला में कृष्ण बलदेव वैद के साथ कुछ दिनों बाद होने वाली अपनी बातचीत के बाद वे मेरे साथ फुर्सत में इत्मीनान से फिर बातचीत करेंगी! लेकिन कभी उनकी व्यस्तता या अस्वस्थता कभी मेरी काहिली और यात्रा भीरुता ने हमारा उस तरह से मिल बैठना [….]