(हमारे दौर के महत्वपूर्ण रचनाकार और संपादक धर्मवीर भारती की शख़्सियत का यह ख़ाका उनकी बेटी के हवाले से है. क़रीब दस साल पहले हुई इस बातचीत में प्रज्ञा भारती ने अपने पिता के व्यक्तित्व के ऐसे तमाम पहलुओं का ज़िक़्र किया [….]
बरेली | साहित्य अपने पाठकों को सुकून या तसल्ली दे सकता है, लेकिन यह हमेशा ज़रूरी नहीं, अच्छा साहित्य अपने दौर के सवालों के जवाब मांगता है, पढ़ने वाले का सुकून छीनकर उसे बेचैन भी करता रहता है. यही बेचैनी वक़्त की कसौटी पर उसकी अहमियत तय करती है. [….]
ऐतिहासिक घटनाओं पर, ख़ासतौर पर 1857 की क्रांति और मध्ययुगीन इतिहास के अनछुए और अल्पचर्चित प्रसंगों पर लिखने वाले राजगोपाल सिंह वर्मा की नई किताब ‘चिनहट 1857: संघर्ष की गौरव गाथा’ के संदर्भ में उनसे यह बातचीत वरिष्ठ पत्रकार अनिल शुक्ल के सौजन्य से… [….]
(शह्रयार हमारे दौर के मक़बूल अदीब, शिक्षक और शायर रहे हैं. फ़िल्मों की मार्फ़त उनकी ग़ज़लों ने ऐसा अलग रंग और ख़ुशबू बिखेरी है कि उन्हें सुनते वक़्त शह्रयार की याद किसी झोंके की तरह बरबस चली आती है. डॉ. प्रेम कुमार ने समय-समय पर उनसे लंबी बातचीत की थी [….]
इन दिनों जब मुख्यधारा की पत्रकारिता से ग्राम्य जीवन और खेती-किसानी के सरोकार नदारद दिखाई देते हैं, ख़ुद अख़बारनवीस भी गाँव की दुनिया के सवालों से गाफ़िल हैं, श्रृंग्वेरपुर के बेरावां गाँव में रहकर शिक्षा और पत्रकारिता से जुड़े डॉ.अनिल की हाल ही में आई किताब ‘ग्रामीण पत्रकारिता सरोकार और सवाल’ [….]