बेहद तपती हुई दोपहर थी वह. मन में भी तपती-सी एक आशंका थी कि कहीं आज फिर डॉ.गोपीचन्द नारंग की व्यस्तता बातचीत को आगे के लिए स्थगित न करा दे. पर साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष के उस वातानुकूलित ऑफ़िस में प्रवेश के साथ ही नारंग जी के वाक्यों व व्यवहार ने मन को शीतल कर आश्वस्त किया [….]