कथक गुरु बिरजू महाराज से प्रवीण शेखर की यह बातचीत 17 मई, 1995 को अमर उजाला के इलाहाबाद संस्करण में छपी. इसे पढ़कर संस्कृति के प्रति उनके सरोकार और नज़रिये की झलक तो मिलती ही है, यह भी मालूम होता है कि टेलीविज़न के ज़रिये फैल रही अपसंस्कृति के बारे में तो वह फ़िक्रमंद थे ही, संगीत सभाओं में ताली भर पीटने वाले श्रोताओं पर भी उनकी निगाह लगी हुई थी. [….]