यूं तो खेल की समाप्ति के बाद जीत की ख़ुशी और हार के ग़म को मैदान का आधा-आधा हिस्सा शेयर कर लेना चाहिए. लेकिन ऐसा होता नहीं है. जीत के रंग इस क़दर प्रबल और चमकीले होते हैं कि हार के रंग स्वतः निस्तेज और क्षीण हो जाते हैं कि उनकी उपस्थिति या तो महसूस नहीं होती या फिर उसका हल्का-सा आभास भर होता है. लेकिन कोई [….]