बरेली का विंडरमेयर थिएटर हमारे रंग परिदृश्य की एक उपलब्धि है. विंडरमेयर के रंग विनायक समूह की तरफ से संदीप शिखर का नाटक ‘ट्रेडमिल’ शनिवार शाम जीवंत हुआ, आकार लिया. निर्देशन दानिश खान ने किया. नाटक का अंतिम संवाद है ‘मेरी कहानी और आपकी कहानी में फर्क ही क्या है?’ इस संवाद और इसके पहले नाटक के [….]
न्यू अलबर्ट कम्पनी की ‘रामायण‘ की स्क्रिप्ट सुधारते वक्त पंडित राधेश्याम ने शायद सोचा भी न हो कि रामायण से जुड़कर उन्हें ऐसी ख्याति मिलेगी जो समय की सीमाओं के पार हमेशा गूंजती रहेगी. हालांकि ‘राधेश्याम रामायण’ इसके दस साल बाद अस्तित्व में आई मगर इस घटना ने थिएटर से उनके बचपन के लगाव को साकार करने के साथ ही पारसी [….]
नई दिल्ली | हिन्दी कथा-संसार में हाशिए की ज़िंदगियों को आवाज़ देने वाले कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह अपने जीवन के 75 वर्ष पूरे कर चुके हैं. उनकी रचनाएँ गाँव-समाज, बोली-बानी और साधारण मनुष्य के संघर्षों का जीवंत दस्तावेज़ रही हैं. इसी रचनात्मक धरोहर का उत्सव मनाने के लिए 19 अगस्त की शाम को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में राजकमल [….]
जौनपुर | आज हिंदी भवन के अजय कुमार सभागार में स्मृति सभा ‘याद-ए-अजय कुमार’ का आयोजन जन संस्कृति मंच द्वारा किया गया. इस आयोजन में उत्तर प्रदेश के कई शहरों से उनके चाहने वाले [….]
प्रयागराज | मूर्धन्य रंगकर्मी रतन थियाम की स्मृति में यूनिवर्सिटी थियेटर की ओर से स्वराज विद्यापीठ में आयोजित स्मृति-सभा में मणिपुर दूरदर्शन द्वारा रतन थियाम पर निर्मित वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया गया और उनके कृतित्व पर चर्चा करके उन्हें याद किया गया.
इस मौक़े पर जुटे विद्यार्थी वृतचित्र देख कर रतन थियाम के निर्देशन और [….]
प्रयागराज | कवि और चिंतक प्रो. बद्रीनारायण मानते हैं कि शिशिर सोमवंशी की कविताओं की वाचिकता इसकी शक्ति है. श्रवण और वाचन कविता के और तरह के अर्थ खोलते हैं. कविता बहु अर्थ देने वाली विधा है. उनका ताज़ा संग्रह भी इसी की पुष्टि करता है.
शिशिर सोमवंशी की कविताओं के संग्रह ‘शायद तुमने हो पहचाना’ के लोकार्पण [….]
नई दिल्ली | राजकमल प्रकाशन ने उर्दू और हिन्दी के बीच संवाद को बढ़ाने की दिशा में एक नई पहल की घोषणा करते हुए कहा है कि ‘राजकमल उर्दू’ अब उर्दू का चुनिंदा और महत्वपूर्ण साहित्य देवनागरी लिपि में प्रकाशित करेगा.
राजकमल पिछले अस्सी वर्षों से हिन्दी के श्रेष्ठ लेखन के साथ-साथ उर्दू का [….]
यूं तो खेल की समाप्ति के बाद जीत की ख़ुशी और हार के ग़म को मैदान का आधा-आधा हिस्सा शेयर कर लेना चाहिए. लेकिन ऐसा होता नहीं है. जीत के रंग इस क़दर प्रबल और चमकीले होते हैं कि हार के रंग स्वतः निस्तेज और क्षीण हो जाते हैं कि उनकी उपस्थिति या तो महसूस नहीं होती या फिर उसका हल्का-सा आभास भर होता है. लेकिन कोई [….]
बरेली शहर के क़िला बाज़ार से होकर द्रोपदी कन्या इंटर कॉलेज की तरफ़ जाने वाली गली में दाख़िल होकर जैसे ही आगे के छोटे-से चौराहे पर पहुँचते हैं, ख़ासी भीड़भाड़ वाली एक दुकान की दीवार पर ‘रवि के मशहूर समोसे’ की मुनादी करता फ़्लेक्स जड़ा हुआ नज़र आता है, कड़ाह घेर कर खड़े लोग समोसों के निकलने के इंतज़ार में बेताब मिलते हैं. [….]