(हमारे दौर के महत्वपूर्ण रचनाकार और संपादक धर्मवीर भारती की शख़्सियत का यह ख़ाका उनकी बेटी के हवाले से है. क़रीब दस साल पहले हुई इस बातचीत में प्रज्ञा भारती ने अपने पिता के व्यक्तित्व के ऐसे तमाम पहलुओं का ज़िक़्र किया [….]
(जोश मलीहाबादी की आत्मकथा ‘यादों की बरात’ में दर्ज यह यात्रा-संस्मरण रेलगाड़ी के पहले और 13 मील के छोटे-से सफ़र की याद भर नहीं है, यह उस दौर के लखनऊ का ऐसा मंज़र-नामा भी है, जो लखनवी तहज़ीब, शहर के भूगोल, वहाँ के लोगों और खान-पान के सलीक़े की बानगी पेश करता है. ऐसा ब्योरा जो शायद थोड़े से लोगों की स्मृति में अब भी बचा हुआ हो. -सं ) [….]
मंटो ने डेढ़ सौ से ज्यादा कहानियां लिखीं, व्यक्ति-चित्र, संस्मरण, फ़िल्मों की स्क्रिप्ट और डायलॉग, रेडियो के लिए ढेरों नाटक और एकांकी, पत्र, कई पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम लिखे, पत्रकारिता की. कविता को छोड़ दें, तो उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में लिखा है. उनकी तमाम रचनाओं पर ख़ूब बात हुई मगर उनके ख़तों पर बात कम ही हुई. [….]