हिंदुस्तानी सिनेमा में यथार्थवाद की बुनियाद रखने वाले बिमल रॉय ऐसे फ़िल्मकार हुए, जिन्हें ‘स्कूल’ का दर्जा हासिल है और जो जीते-जी किंवदंती बन गए. हिंदी की महान फ़िल्मों की कोई सूची उनकी फ़िल्मों के ज़िक्र के बग़ैर पूरी नहीं होती. [….]
पंजाबी का कोई और कवि हिन्दी में इतना मकबूल नहीं है, जितना कि पाश. विशाल हिन्दी समाज में पाश ग़ैर-हिन्दी भाषाओं के सर्वाधिक प्रिय कवि हैं. अख़बारों के लेखों से लेकर कितनी ही किताबों में पाश की कविताओं के हवाले से विचार और संदर्भ तय करने से तो यही लगता है. कितनी ही किताबें उनकी स्मृति को समर्पित हैं. [….]
भारतीय टेलीविजन के इतिहास में धारावाहिक ‘महाभारत’ की लोकप्रियता को टक्कर देने वाला सीरियल अब तक तो कोई आया नहीं है. यह देश का यह पहला ऐसा टीवी सीरियल था, जिसके शुरू होने पर रोज़मर्रा की ज़िंदगी थोड़ी देर को थम-सी जाती थी. घर वाले और पड़ोसी मिलकर टीवी सेट के आगे हाथ बांधे बैठे होते और नुक्कड़ की दुकानों पर ग्राहकों के साथ ही राह चलते लोगों की भीड़ भी ‘महाभारत’ देखने की ख़ातिर जमा मिलती. [….]
कृष्ण बलदेव वैद का जाना हिन्दी साहित्य की दुनिया से ऐसे प्रयोगधर्मी रचनाकार का जाना है, जिन्होंने अपने लेखन और जीवन की मान्यताओं में कभी फ़र्क नहीं किया, तमाम वादों और आडंबरों से दूर रहकर जो मुनासिब लगा, वही कहा. उन्होंने हिन्दी की पड़ोसी ज़बानों उर्दू और पंजाबी को मिलाकर भाषा का नया सौंदर्यशास्त्र और मुहावरा गढ़ा, [….]