फ़िराक़ गोरखपुरी की एक अकेली ज़िंदगी के इतने अफ़साने हैं कि एक अफ़साना छेड़ो, दूसरा ख़ुद ही चला आता है. उनकी बेबाकी और हाज़िरजवाबी के साथ ही ग़ुस्से और तुनकमिज़ाजी के कितने ही क़िस्से कहे-सुने जाते रहे हैं. [….]
आकाशवाणी के कार्यक्रमों से लेकर फ़िल्मों के संस्कृतनिष्ठ गीतों तक जिस एक शख़्स की छाप हमेशा बराबर मिलती है, वह पंडित नरेंद्र शर्मा हैं. बहुआयामी व्यक्तित्व वाले नरेंद्र शर्मा हिंदी की आन-बान और शान थे. कवि-गीतकार, लेखक, अनुवादक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रशासक – जीवन में जो भी भूमिका मिली उन्होंने अपनी छाप छोड़ी. [….]
उनकी शायरी की सोहबत का एक फ़ैज़ तो यही है कि ‘उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है..’. फ़ैज़ सच्चे वतनपरस्त थे और दुनिया भर के जनसंघर्षों के साथ खड़े होने के हामी भी. साम्राज्यवादी ताकतों ने जब भी दीगर मुल्कों को साम्राज्यवादी नीतियों का निशाना बनाया, फ़ैज़ ने उन मुल्कों की हिमायत में अपनी आवाज़ उठाई. [….]
मंटो ने डेढ़ सौ से ज्यादा कहानियां लिखीं, व्यक्ति-चित्र, संस्मरण, फ़िल्मों की स्क्रिप्ट और डायलॉग, रेडियो के लिए ढेरों नाटक और एकांकी, पत्र, कई पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम लिखे, पत्रकारिता की. कविता को छोड़ दें, तो उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में लिखा है. उनकी तमाम रचनाओं पर ख़ूब बात हुई मगर उनके ख़तों पर बात कम ही हुई. [….]
नारायण गणपत राव बोडस यानी नाग बोडस ने कहानियाँ लिखीं, उपन्यास भी लिखा मगर उनकी पहचान नाटककार के तौर पर ही है. अपने नाट्य लेखन से आधुनिक भारतीय रंगमंच को समृद्ध करने वाले नाटककार. ऐसे नाटककार जिनकी मान्यताएं उन्हें दूसरों से अलग करती हैं मगर जो रंगकर्म के लिए बहुत ज़रूरी मालूम देती हैं, चाहे वह रंग-भाषा का मसला हो या फिर नाट्य लेखन का. [….]