अदब की दुनिया में अदब से ‘इस्मत आपा’ कही जाने वाली इस्मत चुग़ताई अपने दौर की इस क़दर बेबाक़ और बग़ावती तेवर वाली लेखिका थीं कि ‘महिला मंटो’ और ‘लेडी चंगेज़ ख़ां’ भी कही जातीं. उनके दौर में जब ‘स्त्री विमर्श‘ साहित्य की कोई स्वतंत्र धारा नहीं थी [….]
साठ के दशक में हिन्दी साहित्य में नई कविता आंदोलन प्रमुख कवियों में चंद्रकांत देवताले का भी शुमार था. वे मुक्तिबोध, नागार्जुन, शमशेर, केदारनाथ अग्रवाल जैसे कवियों की परंपरा से आते थे. अपने अग्रज कवियों की तरह उनकी कविताओं में भी जनपक्षधरता और असमानता, अन्याय और शोषण के ख़िलाफ़ विद्रोह साफ़ दिखाई देता है. [….]
फ़िल्मी दुनिया में शैलेन्द्र ऐसे गीतकार हुए हैं, जिन्होंने अपने गीतों के ज़रिए आम आदमी के जज़्बात को बड़े फ़लक तक पहुंचाया. उनके सुख-दुःख में अपने गीतों के मार्फ़त वे शरीक हुए. उन्हें नया हौसला, नई उम्मीद दी. यही वो बात है कि शैलेन्द्र के गीत आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं, जितने कल थे और आगे भी रहेंगे. सही मायने में वह जनगीतकार थे. [….]
साहित्य में ऐसे कथाशिल्पी विरले ही हुए हैं, जिन्होंने अपने लेखन को दृश्य-श्रृव्य माध्यमों से जोड़कर, आम लोगों तक कामयाबी से पहुंचाया हो. साहित्य की तमाम विधाओं से लेकर जिनकी क़लम का जादू मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, वृत्तचित्र, फ़िल्म जैसे सभी माध्यमों में समान रूप से चला हो. मनोहर श्याम जोशी ऐसा ही नाम हैं. [….]