प्रतापगढ़ में बाबूपट्टी के बच्चन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी पढ़ाते मगर कविताएं हिंदी में करते. उनके दो दर्जन से ज़्यादा कविता संग्रह छपे मगर ज़माना उन्हें याद करता है, ‘मधुशाला’ के लिए. निःसंदेह वह हालावाद के प्रवर्तक रहे भी. [….]
राही मासूम रज़ा के अदबी सफ़र का आगाज़ शायरी से हुआ. 1945 में वह प्रगतिशील लेखक संघ से वाबस्ता हुए. सन् 1966 आते-आते उनकी ग़ज़लों-नज़्मों के सात संग्रह आ चुके थे. यही नहीं, सन् सत्तावन की एक सदी पूरी होने पर 1957 में लिखा हुआ उनका एपिक ‘अठारह सौ सत्तावन’ उर्दू और हिन्दी दोनों ही ज़बानों में ख़ूब मक़बूल हुआ. [….]