स्कूल में मास्टर चमकीले रंगों की शीशियां दिखाता, लगता था ऐसा कि हमारी मिट्टियों के रंग कुछ ख़ास नहीं हैं. बाहर के संसार की चमक-दमक देखकर मन तो करेगा ही उसे जानने को.
रंग-बिरंगी शीशियां, बने बनाये रंग, न घोटने का झंझट, न इंतज़ार, न सबूरी. बस कुछ-कुछ बनाते मिटाते चले जाओ जो भी बन पाये. [….]
किताब
अपना मुल्क