सआदत हसन मंटो का एक उपन्यास है – बग़ैर उनवान के. इस उपन्यास की भूमिका पंडित जवाहर लाल नेहरू के नाम मंटो का एक ख़त है. यों इस ख़त का उपन्यास से कोई रिश्ता नहीं है, मगर उस दौर के सियासी और समाजी हालात के बारे में मंटो का नज़रिया, साथ ही तब के लेखकों के लिखने के ढंग का भी अंदाज़ लगता है. [….]