सत्यजीत रे और उनकी फ़िल्मों के प्रशंसकों के लिए एक ख़ास ख़बर है. रे के जन्म शताब्दी वर्ष के मौक़े पर फ़िल्म्स डिविज़न आज से ‘मास्टरस्ट्रोक्स’ के नाम से ऑनलाइन फ़िल्म फ़ेस्टिवल आयोजित कर रहा है. यह फ़ेस्टिवल 6 मई तक चलेगा. [….]
अल्बर्ट आइंस्टाइन | 14 मार्च 1879 – 18 अप्रैल 1955
जर्मनी में एक यहूदी परिवार में जन्मे आइंस्टाइन का बचपन उनकी मेधा की तरह ही असामान्य लगने वाले क़िस्सों में कहा-सुना जाता है. फिर दुनिया ने जब उन्हें वैज्ञानिक के तौर पर पहचाना तो भी उनकी विलक्षण प्रतिभा के साथ ही भुलक्कड़ी और हाज़िरजवाबी के तमाम क़िस्से मशहूर हुए. [….]
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की अहम् शख़्सियत किशोरी अमोनकर ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से एक इंटरव्यू में कहा था, “घराना जैसा कुछ नहीं होता. सिर्फ़ संगीत होता है. संगीत को किसी घराने के क़ायदे में बांधना संगीत को ख़ास जातियों के ख़ाने में बांटने जैसा है. संगीत सीखने वाले को किसी तरह की हद का बोध कराना ठीक नहीं. [….]
पिठोरा बनाने वाले वह अकेले चित्रकार नहीं थे, और न ही झाबुआ के अपने भाभरा गांव में वह अकेले ‘लिखंदरा’ थे, फिर भी पिठोरा का ज़िक्र आते ही पेमा फत्या का नाम ख़ुद ब ख़ुद ज़ेहन में आता है. दुनिया के कितने ही संग्रहालयों-कला वीथिकाओं में उन्हीं पेमा के हाथ के बने पिठोरा संजोये हुए हैं, जिन्होंने पचास सालों से ज़्यादा वक़्त तक भाभरा के कितने ही घरों की भीत पर पिठोरा के चित्र उकेरे थे. पेमा फत्या का जाना एक कल्पनाशील चित्रकार का जाना है, [….]
‘मित्र संवाद’ केदारनाथ अग्रवाल और रामविलास शर्मा के पत्रों का संकलन है, जिसका सम्पादन रामविलास शर्मा और अशोक त्रिपाठी ने किया है. सन् 1992 में परिमल प्रकाशन से आई यह किताब यों तो मित्रों के बीच ख़तो-किताबत का दस्तावेज़ है, मगर निजी मसलों पर बातचीत के साथ ही समकालीन साहित्य, साहित्यकारों, पत्र-पत्रिकाओं के हाल-हवाल के साथ ही इसमें उनके साहस, उल्लास, ज़िंदादिली और संघर्ष का स्वर भी सुनाई देता है. [….]
हिन्दुस्तान की सरहद के क़रीब पाकिस्तान के मुजफ़्फ़रगढ़ ज़िले में जटोई तहसील के मीरवाला गांव की मुख्तारन बीबी दूसरे गूजर किसान परिवारों की युवतियों की तरह ही एक आम युवती हुआ करती थी. 22 जून 2002 की रात उन पर टूटे क़हर ने उनके और घर वालों की ज़िंदगी में ऐसा तूफ़ान खड़ा कर दिया कि सब कुछ बदल गया. वह पढ़ी-लिखी नहीं थीं और न ही इतनी ताक़तवर कि मस्तोई क़बीले के लोगों के हाथों हुई बेइज्ज़ती का बदला लड़कर ले पातीं [….]
यह विज्ञापन ‘प्रकाशन समाचार’ के जनवरी 1957 के अंक में छपा. उन दिनों ‘मैला आंचल’ के ख़िलाफ़ छपे लेखों और उपन्यास के आलोचकों को जवाब देने की यह युक्ति फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की ही थी. तमाम आलोचनाओं के कारण जुटाते हुए यह विज्ञापन ख़ुद रेणु ने लिखा था.
‘मैला आँचल’? वही उपन्यास जिसमें हिन्दी का एक भी शुद्ध वाक्य नहीं है? [….]
घने जंगलों के बीच डेंकाली की गुफा में रहने वाला वह प्रेत याद है न, जो बाहर निकलता तो नीला नक़ाब और काला चश्मा पहनकर, प्रेत जो मजलूमों का मददगार था और अपराधियों का दुश्मन, कोई मुश्किल पाकर गुर्रन और उसके साथी ड्रमों की आवाज़ के ज़रिये संदेश भेजते तो तूफ़ान की सवारी करता शेरा के साथ वह मौक़े पर पहुंच जाता और जिसका मुक्का अपराधियों के चेहरे पर पड़ता तो खोपड़ी का निशान बाक़ी रह जाता. [….]
उनकी आवाज़ और उनकी गायकी ने संगीत-रसिकों की कई पीढ़ियों के मन पर अपनी छाप छोड़ी, आत्मा की गहराई तक उतर जाने वाला उनका घन-गंभीर स्वर उन लोगों को भी प्रभावित करता रहा है, जो शास्त्रीय संगीत से बहुत वाक़िफ़ नहीं. मगर जिस संगीत साधक भीमसेन जोशी को ज़माने ने जाना, इस मुक़ाम तक पहुंचने का उनका सफ़र आसान हरगिज़ नहीं था. [….]