(हंस के 1986 के नवंबर अंक में छपी ‘नासपीटी कलट्टरी’ मेरी ख़ास पसंद इसलिए बन गई कि राजेंद्र यादव जी ने उसकी अनेक बार अनेक तरह से चर्चा और प्रशंसा की ही थी- अपने संपादकीय में भी तीन-चार बार उसका प्रमुखता से उल्लेख किया था. बाद में कृष्णा सोबती द्वारा उसे 1986 की श्रेष्ठ कहानी के रूप में ज्ञानपीठ से छपे भारतीय भाषाओं के एक संकलन [….]