फुब्बू,
तुम्हारे अलीगढ़ से जाने के बाद भी एक पत्र लिखा था. उसका क्या हुआ, मालूम नहीं. जब तुम्हारा ठौर—ठिकाना ही नहीं मालूम तो पता तो कुछ इसका भी नही है, पर फिर भी लिख रहा हूँ. देखो तो बीस वर्ष बीत चले हैं बिना तुम्हें देखे. पर तुम्हारे साथ के हिस्से में का न कुछ रीता हुआ है, न धुँधला. तुम्हारे देश की बात पर या तुम्हारे हमवतनों [….]