वहां पंजाबी ढाबा के बैनर थे, मूंज की रस्सी की चारपाई थी, पान का काउण्टर और एक अदद ब्रांड न्यू ट्रैक्टर खड़ा था. पंजाबी स्पेशल खिलाने का वादा करने वाले उस ठिकाने को इस दुपहरी में तलाशते हुए कलक्टरगंज तक जाना बेकार गया [….]
राजस्थान के ख़ूबसूरत शहरों में से एक है – उदयपुर. अक्सर लेक पैलेस, सिटी पैलेस और महाराजा अरविंद सिंह मेवाड़ की ग्लॉसी तस्वीरों से ही पहचाना जाने वाला यह शहर अपनी प्राकृतिक विविधता, लोगों की ज़िन्दादिली और लोक जीवन की शैली के चलते अनूठा और बेजोड़ है. जिन दिनों कुम्भ पर अपनी तस्वीरों की प्रदर्शनी लेकर वहां गया, शहर में ख़ूब हलचल के दिन थे. [….]
मुशायरा तो वाकई तारीख़ी था. कई मायने में बड़ा था- मंच पर शायरों की तादाद के लिहाज़ से, उनमें शुमार नामचीन सुख़नवरों की मौजूदगी के लिहाज़ से, मैदान में जुटी भीड़ के लिहाज़ से, चाक चौबंद पुलिस और चाय-पान के इंतज़ाम के लिहाज़ से. हर लिहाज से बड़े और तारीख़ी इस मुशायरे में अगर कोई शै छोटी पड़ गई तो वह था सुनने वालों का मेयार. [….]
फागुन में रामलीला! सुनने में यह कुछ अजीब लग सकता है मगर यह सच है कि बरेली वाले साल में दो बार रामलीला का मंचन देखने जुटते हैं. हालांकि रामलीला दशहरे से पहले कार्तिक में खेलने की परंपरा है और दशहरे के रोज़ रावण का पुतला जलाने और अगले रोज़ राजगद्दी निकालने के बाद यह सम्पन्न होती है मगर बरेली में होली के एक रोज़ पहले भी रावण का पुतला जलता है और होली वाले दिन राजगद्दी निकलती है, [….]
क़ुर्रतुलऐन हैदर के लिखे पर अभी बात करने की यों कोई ख़ास वजह नहीं. ज़माना जब से मौक़े-म़ौके पर लिखने-पढ़ने की रवायत का हामी हुआ है, बिना म़ौके ऐसी कोई बात, ऐसा कोई ज़िक्र ज़माने को चौंकाने लगा है. तो आप चाहें तो इसे चौंकाने की कोशिश भी मान सकते हैं. हुआ बस इतना है कि काफ़ी अर्से पहले पढ़ा हुआ उनका उपन्यास ‘चांदनी बेगम’ अभी फिर से पढ़कर ख़त्म किया है. और इसे पढ़ते हुए ख़ुद कई बार चौंकता रहा हूं. [….]