आख़िर क्या होता है खेल को ‘अलविदा’ कहना. खेल से ‘सन्यास’ लेना. इसे कोई खेल प्रेमी भला कहां समझ पाएगा. और यह इसलिए मुमकिन नहीं होता कि खेल के मैदान से उनका एक चहेता रुख़सत होता है, तो दो और खिलाड़ी उसकी जगह भरने के लिए आ जाते हैं. और प्रशंसक पुराने को भूलकर नए के साथ हो लेते हैं. [….]